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देश के 41% चिकित्सक कर रहे हैं AI का इस्तेमाल

भारत में अब 41% डॉक्टर अपने काम में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले तीन गुना है और अमेरिका-यूके जैसे देशों से आगे है। भारतीय डॉक्टर एआई को लेकर दुनिया में सबसे ज्यादा आशावादी हैं लेकिन उन्हें चिंता है कि जल्दी ही मरीज खुद बीमारी का निदान करने लगेंगे जिससे डॉक्टर-मरीज रिश्ते और जिम्मेदारी पर असर पड़ेगा। 

यह जानकारी चर्चित मेडिकल जर्नल एल्सेवियर की नई वैश्विक रिपोर्ट क्लीनिशियन ऑफ फ्यूचर 2025 में दी है जिसे मंगलवार को वैश्विक स्तर पर जारी किया जाएगा। इस रिपोर्ट में चेतावनी भी दी है कि अगर संस्थागत ट्रेनिंग, डिजिटल टूल्स और एआई गवर्नेंस को मजबूत नहीं किया तो यह तकनीकी क्रांति अधूरी रह सकती है।

भारत में एआई का तेजी से बढ़ते इस्तेमाल पर सहमति जताते हुए साइबर पीस के संस्थापक विनीत कुमार ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए खास तरह के साइबर सुरक्षा मानक बनाने जरूरी हैं क्योंकि अस्पतालों से लेकर स्वास्थ्य तकनीक कंपनियों तक मरीजों की जांच से लेकर रिपोर्ट के विश्लेषण और दवाओं में इसका इस्तेमाल कर रही हैं जिससे डाटा पॉइजनिंग (साइबर हमला) के जोखिम से इंकार नहीं किया जा सकता।

एक तरफ अस्पतालों को डाटा सुरक्षा के लिए जीरो-ट्रस्ट आर्किटेक्चर के लिए प्रोत्साहित करना होगा जबकि दूसरी ओर डॉक्टर और स्टाफ को साइबर जागरूकता की ट्रेनिंग देना भी जरूरी है।

वहीं ग्लोबल एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल स्टूडेंट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देवघर एम्स के डॉ. शुभम आनंद ने कहा कि चिकित्सा शिक्षा में भी एआई की वजह से काफी असर पड़ रहा है। भारत को न केवल डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए बल्कि डॉक्टरों को एआई के इस्तेमाल पर भरोसेमंद ट्रेनिंग के अलावा स्पष्ट दिशा निर्देश भी लागू करने चाहिए।

52 फीसदी डॉक्टरों ने चिंता जताई
स्वास्थ्य क्षेत्र में एआई तकनीक के प्रयोगों का पता लगाने के लिए एल्सेवियर ने भारत सहित दुनिया के 109 देशों में 2206 डॉक्टरों का चयन कर उनसे बातचीत की। इस दौरान आधे से ज्यादा (52%) भारतीय डॉक्टरों ने कहा कि आने वाले समय में अधिकांश मरीज एआई टूल्स का इस्तेमाल करके खुद निदान करने लगेंगे जो वैश्विक औसत (38%) से काफी ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में एआई अपनाने की दर 48 फीसदी बताई गई है जो अमेरिका (36%) और ब्रिटेन (34%) से अधिक है जबकि चीन (71%) से पीछे है। 

By Ankshree

Ankit Srivastav (Editor in Chief )

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