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महंगाई की मार ने कम की काम की रफ्तार, लकड़ी और लोहे की बनाते है अनोखी नांव, इनके वंशजो ने श्री राम को कराई थी नदी पार

Report By : Shariq Khan Kanpur (UP)

नांव बनाकर अपनी जीविका चला रहे हों निषाद राज के वंशज, ये हैं कानपुर शहर और एशिया की सबसे बड़ी बाजार जहां बनती है नोखी और सबसे हल्के वजन की नांव, और कीमत इतनी की हर कोई इन्हें खरीद ले, लेकिन देश के कई राज्यों में जाकर भी बनाते हैं ये समुदाय के लोग नांव पर आज इनका पुरसाने हाल पूछने वाला कोई नही जिसके चलते लुप्त हो रहा आहे नाव बनाने का काम।

कानपुर शहर में सबसे पुरानी और पेशियों दर पीढ़ियों से चला आ रहा नाव निर्माण का अकार्य अब समाप्ति की ओर दिखाया दे रहा है क्योंकि पहले को अपेक्षा नदी कोनपार करने के लिए तकनीक और डेवलपमेंट ने इनकी कमर तोड दी है न तो अब कोई नांव से नदी पार करता है और न ही संसाधन की कमी है क्योंकि लगातार नदियों पर बनने वाले पुल और ब्रिज ने इस की अवशकता पर विराम लगा दिया आहे अब सिर्फ मछली के शिकार करने ,या नदियों पर अपनी जीविका को निर्भर करने वाले लोग हिबिस्की मांग करते हैं वैसे तो नांव कई तरह से बनती है लेकिन कानपुर में ये स्मौदय अनोखी नाव का निर्माण सिर्फ यही करते हैं जिसकी मांग भी अच्छी थी सरल ये समुदाय लकड़ी और लोहे की चादर से नाव का निर्माण करते हैं जिसकी कीमत 10 हजार से शुरू होकर 20 हजार तक ही रहती है लेकिन इस समुदाय को आज इस बात का मलाल है की अब मांगबकम होने के चलते पीढ़ियों से चले आ रहे इस काम में कमी आ गई है और अब इस काम।को करने वाले महज कुछ ही लोग रह गए अजीन जिन्हे उंगलियों गिना जा सकता है, अब इन परिवारों के युवा इस काम को कर ना नही चाहते हैं क्योंकि इसकी कमाई से घर चलाना अभी मुश्कि है और सरकार की ओर से इस समुदाय के लिए कोई खास व्यवस्था अभी नही है और जो कुछ आता भी है तो बिचौलियों के बंदरबांट में चला जाता है लेकिन यही हाल रहा तो अब मानसून के समय में भी इनकी मांग खत हो जायेगी क्योकिनपहले इनकी मांग मानसून से पहले बढ़ जाती थी पर अब स्टीमर और टेक्नोलॉजी ने इन्हे मजधार में फसा दिया है।

By admin

Journalist & Entertainer Ankit Srivastav ( Ankshree)

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