Report By : ICN Network
दिल्ली के ओखला इलाके, विशेषकर बटला हाउस, मुरादी रोड और खिज़र बाबा कॉलोनी में रह रहे सैकड़ों परिवारों को इन दिनों जबरदस्त चिंता और भय का सामना करना पड़ रहा है। कारण है—दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) और उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की ओर से जारी किया गया एक सख्त नोटिस, जिसमें लोगों को 15 दिनों के भीतर अपने घर खाली करने का आदेश दिया गया है। नोटिस में चेतावनी दी गई है कि अगर निर्धारित समयसीमा के अंदर मकान या दुकानें खाली नहीं की गईं, तो प्रशासन बुलडोज़र चलाकर निर्माण ध्वस्त कर देगा।
यह नोटिस उन बस्तियों में चस्पा किया गया है, जिन्हें दशकों से बसे हुए लोग ‘अपना घर’ मानते आए हैं। इनमें से अधिकतर लोगों का कहना है कि वे बीते तीस-चालीस वर्षों से इन मकानों में रह रहे हैं। उनकी वहां बिजली, पानी, गैस कनेक्शन सहित सभी सुविधाएं वैध रूप से चालू हैं। बावजूद इसके अब उन्हें बेघर करने की चेतावनी मिल रही है।
इस कार्रवाई से प्रभावित लोग काफी आक्रोशित और असहाय महसूस कर रहे हैं। कई निवासियों ने बताया कि वे वर्षों की मेहनत और जमा पूंजी से मकान बनाकर यहां रह रहे हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि उनके पास ज़मीन और निर्माण से जुड़े वैध दस्तावेज मौजूद हैं, लेकिन फिर भी प्रशासन उन्हें निशाना बना रहा है। स्थानीय दुकानदारों ने बताया कि वे अपना कारोबार यही से चला रहे हैं और अचानक इस तरह की कार्रवाई उनके जीवन पर सीधा प्रभाव डाल रही है।
इस नोटिस के विरोध में लोगों ने कोर्ट का रुख किया है। हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं में निवासियों ने कार्रवाई पर रोक की मांग की है। अदालत ने कुछ मामलों में अंतरिम राहत भी दी है और अगली सुनवाई तक कार्रवाई को स्थगित करने के निर्देश दिए हैं। वहीं कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है, जहां याचिकाकर्ताओं ने इस कार्रवाई को अन्यायपूर्ण बताया है और इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की है।
पूरे मामले ने एक सामाजिक और राजनीतिक रंग भी ले लिया है। स्थानीय नेताओं और समुदाय के लोगों ने इसे एकतरफा कार्रवाई बताया है और प्रशासन पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में सिर्फ एक खास समुदाय को टारगेट किया जा रहा है और वह भी ऐसे समय में जब ईद जैसे बड़े त्योहार नज़दीक हैं। यह न सिर्फ मानवता के खिलाफ है, बल्कि नागरिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।
इस पूरे प्रकरण से ओखला की फिजा में एक गहरी बेचैनी फैल गई है। लोग अपने घरों को बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं—कानूनी लड़ाई से लेकर मीडिया और सामाजिक मंचों तक अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन और जनता के बीच यह टकराव एक बार फिर उस सवाल को सामने लाता है—कि क्या विकास के नाम पर आम आदमी के घर उजाड़ देना ही एकमात्र विकल्प है?