Report By : ICN Network
दिल्ली-एनसीआर से 8 हफ्तों के भीतर स्ट्रीट डॉग्स हटाने के फैसले ने शहर के एक हिस्से में राहत की उम्मीद जगाई है, लेकिन सवाल बड़ा है—क्या यह मुमकिन है? इतने सारे कुत्तों को हटाने के लिए न जगह है, न संसाधन, और न ही तैयार इंफ्रास्ट्रक्चर।
वेटरनरी डिपार्टमेंट के अधिकारियों के मुताबिक, एमसीडी वर्तमान में 20 एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) सेंटर्स चला रही है, जहां सर्जरी के बाद कुत्तों को 10 दिनों के लिए रखा जाता है। अगर इन्हें स्थायी शेल्टर में भी बदल दिया जाए, तो यहां अधिकतम 4–5 हजार कुत्ते ही समा सकते हैं। जबकि, 2019 के अनुमान के अनुसार दिल्ली में कुत्तों की संख्या 8 लाख से ज्यादा थी और अब यह 10 लाख के पार मानी जा रही है।
एक कुत्ते के खाने पर रोज़ाना 40–50 रुपये का खर्च आता है, यानी कुल मिलाकर प्रतिदिन 3–4 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी। इसके अलावा स्टाफ की तनख्वाह, पकड़ने और ट्रांसपोर्ट का खर्च, इलाज, शेल्टर निर्माण और स्टरलाइजेशन जैसी लागत अलग है। अभी एक कुत्ते के स्टरलाइजेशन पर NGO को 1,000 रुपये मिलते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर ऑपरेशन के लिए 2,000–3,500 शेल्टर और सैकड़ों एकड़ ज़मीन चाहिए, क्योंकि एक कुत्ते को रखने के लिए कम से कम 40–45 वर्ग फुट जगह जरूरी होती है। वहीं, कुत्तों को पकड़ने के लिए गाड़ियां, प्रशिक्षित स्टाफ, एंबुलेंस और क्वारंटीन यूनिट भी चाहिए, जबकि फिलहाल दिल्ली के 12 जोनों में सिर्फ दो-दो पकड़ने वाली गाड़ियां हैं।
एनिमल वेलफेयर एक्सपर्ट्स जैसे हाउस ऑफ स्ट्रे के फाउंडर संजय महापात्रा और डॉग एक्टिविस्ट सोनया घोष चेतावनी देते हैं कि बिना पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर के यह अभियान एक बड़े डिज़ास्टर में बदल सकता है—भीड़भाड़ वाले शेल्टर्स में बीमारियां फैल सकती हैं और कुत्तों की मौत तक हो सकती है।