Arvind Kejriwal
लद्दाख के लेह में भड़की हिंसा ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस मुद्दे पर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सत्ताधारी बीजेपी पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने लद्दाख की जनता के संघर्ष को लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई करार देते हुए इसे हर देशभक्त का मुद्दा बताया। केजरीवाल ने चेतावनी दी कि लद्दाख की यह चिंगारी जल्द ही पूरे देश में आग बन सकती है।
सोशल मीडिया पर गरजे केजरीवाल
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी बात रखते हुए केजरीवाल ने लिखा, “हमने अंग्रेजों से आजादी इसलिए नहीं छीनी थी कि उनकी गुलामी की बेड़ियां अब बीजेपी की तानाशाही में ढल जाएं। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे वीरों ने खून बहाकर लोकतंत्र की नींव रखी थी, ताकि हर भारतीय अपनी सरकार चुनने का हक हासिल कर सके। लेकिन आज बीजेपी सत्ता के मद में चूर होकर राज्यों के अधिकार छीन रही है, उन्हें केंद्र शासित प्रदेश बनाकर जनता की आवाज को कुचल रही है।”
लद्दाख की पुकार: वोट का हक, अपनी सरकार
केजरीवाल ने लद्दाख के लोगों की मांग को जायज ठहराते हुए कहा, “लद्दाख की जनता क्या मांग रही है? सिर्फ अपने वोट का हक, अपनी सरकार चुनने का अधिकार। लेकिन बीजेपी बार-बार वादे करके भी उनकी आवाज को दबा रही है।” उन्होंने जोर देकर कहा, “लोकतंत्र जनता की बुलंद आवाज है। जब सरकार इस आवाज को कुचलने लगे, तो जनता का फर्ज है कि वह और जोर से बोले। अगर हमें देश के लोकतंत्र को बचाना है, तो इस तानाशाही के खिलाफ अब चुप नहीं रहा जा सकता। आज यह लद्दाख की लड़ाई है, कल यह पूरे देश की जंग बन सकती है।”
हिंसा ने उजागर किया गहरा असंतोष
बुधवार, 24 सितंबर को लद्दाख में राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर हुए प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया। इस दौरान चार लोगों की जान चली गई, जबकि 80 से अधिक लोग घायल हो गए। प्रशासन ने हालात पर काबू पाने के लिए कर्फ्यू लगा दिया और 50 लोगों को हिरासत में लिया। इस उथल-पुथल के बीच जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जो 15 दिनों से अनशन पर थे, ने अपनी भूख हड़ताल खत्म करने का ऐलान किया।
निष्कर्ष: लोकतंत्र की रक्षा का आह्वान
केजरीवाल का यह बयान न केवल लद्दाख के संघर्ष को राष्ट्रीय मंच पर लाता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या सत्ता के दम पर जनता की आवाज को दबाने की कोशिशें देश के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करेंगी। उनकी यह चेतावनी कि “अब चुप नहीं बैठा जा सकता” हर उस नागरिक के लिए एक आह्वान है, जो लोकतंत्र और स्वतंत्रता के मूल्यों को बचाने में विश्वास रखता है।