क्या अकेले मैदान में उतरेगी कांग्रेसBihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के करीब आते ही महागठबंधन के भीतर कांग्रेस का रुख साफ होता जा रहा है। 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस अब अपने सहयोगी दलों के लिए कुछ सीटों की ‘कुर्बानी’ देने को तैयार दिख रही है। हालाँकि, सीट शेयरिंग की अंतिम तिथि 15 सितंबर तय की गई है, लेकिन दिल्ली में हाल ही में हुई एक गोपनीय बैठक में सीटों की संख्या और पसंद पर सहमति बनने की खबरें हैं। इस बैठक में कांग्रेस आलाकमान ने बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु को पूरी छूट दी है, जो अब बिहार में इस रणनीति को लागू करने के लिए सक्रिय हैं। आइए जानते हैं कि कांग्रेस के भीतर का सच क्या है? कितनी सीटों पर और कहाँ से चुनाव लड़ेगी?
‘कुर्बानी 15’: 10-15 सीटों का बलिदान, 55-60 सीटों का लक्ष्य
सीटों की होड़ और मनपसंद क्षेत्रों को लेकर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बिहार के नेताओं ने गहन विचार-विमर्श किया। इस चरण के बाद कांग्रेस ने अपनी अधिकतम और न्यूनतम सीटों की संख्या तय कर ली है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस गठबंधन के अन्य दलों—खासकर राजद—के लिए 10 से 15 सीटों का त्याग करने को तैयार है। इसका मतलब है कि अगर उसे 55 से 60 सीटों की हिस्सेदारी मिलती है, तो वह संतुष्ट रहेगी। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कांग्रेस ने बिहार में कड़ी मेहनत की है—’नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा’ से लेकर ‘वोटर अधिकार यात्रा’ तक। इन अभियानों के जरिए पार्टी ने अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा में तेजस्वी यादव को बैकबेंचर दिखाने की चाल चली, सीएम पद पर चुप्पी साधे रखी। अब कांग्रेस का दबदबा राजद पर बढ़ता जा रहा है। अगर 50 से कम सीटें मिलती हैं, तो वह अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम उठा सकती है।
चुनावी रणनीति: उम्मीदवार चयन और समीकरणों का मंथन
आलाकमान के टारगेट को अमली जामा पहनाने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेता राजनीतिक समीकरणों को साधने में जुट गए हैं। 14 सितंबर से उम्मीदवार चयन प्रक्रिया शुरू होगी, जिसमें जिला और प्रखंड कमेटियों को नाम सुझाने का निर्देश दिया गया है। 16 सितंबर को चुनाव समिति की बैठक होगी, और 19 सितंबर से स्क्रीनिंग कमेटी काम शुरू करेगी।
अल्लावरु का रुख: संतुलन और समझौता
बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने कहा कि सीट बंटवारे में संतुलन जरूरी है। महागठबंधन की मैनिफेस्टो कमेटी ने जीतने और कमजोर सीटों पर विचार के लिए प्रस्ताव भेजा है। उन्होंने स्वीकार किया कि 2020 की तुलना में कम सीटों पर लड़ेंगे, लेकिन नए सहयोगियों को जगह देंगे।
बगैर सीएम चेहरे की रणनीति
कांग्रेस बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ने पर अड़ी है, जैसा कि लोकसभा में किया। अल्लावरु का तर्क है कि इससे वोटों का बिखराव नहीं होगा। तेजस्वी पर मुकदमों और गैर-यादव वोटों के छिटकने के खतरे को देखते हुए यह कदम उठाया गया। चुनाव बाद विधायक सीएम चुनेंगे, यह फैसला कोऑर्डिनेशन कमेटी करेगी।
क्या कांग्रेस अकेले लड़ेगी या महागठबंधन में बनी रहेगी? 15 सितंबर का दिन इसका जवाब देगा!