बिहार के छोटे से गांव में जन्में मनोज ने पहला ख्वाब ही एक्टर बनने का देखा था। इसके लिए उन्हें शुरुआत से ही बहुत पापड़ बेलने पड़े थे। NSD के लिए दिल्ली तक पहुंचने के लिए उन्होंने झूठ का सहारा लिया था। उन्होंने पेरेंट्स से कहा था कि वे IAS की तैयारी के लिए दिल्ली जा रहे हैं।ऐसी ना जाने कितनी रुकावटों की बेड़ियां तोड़ मनोज ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई है।
मनोज बाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल में 1969 को बेलवा, बिहार में हुआ था। 5 भाई-बहन में वे दूसरे नंबर पर थे। मनोज के पिता किसान थे। ऐसे में परिवार की आर्थिक स्थिति खास अच्छी नहीं थी। मनोज को बचपन से कोल्ड ड्रिंक और कबाब बहुत पंसद थे, लेकिन इतने पैसे नहीं होते थे कि वे ये सब खा-पी सकें।
उनके मिलने वाले साथी बताते हैं कोल्ड्र ड्रिंक की दुकान या कबाब की दुकान से गुजरते वक्त वे बस इन चीजों को देखकर रह जाते थे। मन में सोचते थे कि जब थोड़े पैसे इकट्ठे हो जाएंगे, तब वे इन दोनों चीजों का लुत्फ उठाएंगे। फिर जब कभी पैसे होते तो वे सबसे पहले कोल्ड्र ड्रिंक पीते और बचे हुए पैसों से कबाब खाते थे।
12 वीं पास करने के बाद मनोज दिल्ली चले गए, लेकिन यहां वे एक झूठ बोलकर पहुंचे थे। मनोज के पेरेंट्स इस सच के साथ उन्हें दिल्ली नहीं भेजते कि वे एक्टर बनने जा रहे हैं। ऐसे में उन्होंने पिता से कहा- मैं डॉक्टर तो नहीं बन सकता, लेकिन IAS जरूर बनूंगा और इसकी तैयारी के लिए दिल्ली जाना है।
ये सुन परिवार वालों ने उन्हें दिल्ली भेज दिया। 2-3 साल दिल्ली में बिताने के बाद मनोज ने सोचा कि वे घरवालों को सच्चाई बता दें। उन्होंने पिता को खत लिख कर बता दिया कि वे एक्टर बनने दिल्ली आए हैं।
हालांकि, जो जवाब पिता ने मनोज को दिया, वो काफी मजेदार था। उन्होंने लिखा- प्रिय पुत्र मनोज। मैं तुम्हारा ही पिता हूं। मुझे पता है कि तुम एक्टर बनने ही गए हो।
1993 से लेकर 1997 तक, ये साल उन्होंने जैसे-तैसे बिताए। उन्होंने एक इंटरव्यू में ये बताया था कि ये दौर उनकी लाइफ का सबसे खराब दौर था।ना रहने का कोई सही ठिकाना था और ना खाना खाने के लिए पैसे थे। दिन भर अकेले कमरे में पड़े रहते थे। पूरा दिन बस बड़े-बड़े डायरेक्टर-प्रोड्यूसर के ऑफिस के चक्कर काटने में निकल जाता था। इस दौरान उन्हें किसी बड़े प्रोजेक्ट में काम भी नहीं मिला था।
सत्या के बाद 1999 से लेकर 2003 तक, मनोज को फिल्मों में अच्छे रोल मिले, लेकिन इसके बाद वे फिर से अच्छे किरदार के लिए संघर्ष करने लगे। ये संघर्ष उनका 7 साल तक चला। 2003 से लेकर 2010 तक वे अच्छे रोल के लिए भटकते रहे। ऐसा नहीं था कि इस दौरान उन्हें काम नहीं मिला, काम मिला पर उनकी पसंद का नहीं। इतने लंबे संघर्ष के बाद फिल्म राजनीति से उनका करियर फिर से पटरी पर आ गया।फिर 2012 में फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर रिलीज हुई, जिसने रातों-रात मनोज को स्टार बना दिया।