नहाय-खाय के दौरान व्रती नहाने के बाद कद्दू एवं चावल खाएंगे। इसके बाद व्रत शुरू हो जाएगा। वह रविवार को पूरा दिन व्रत रखेंगे व शाम को खरना में पकवान खाने के साथ व्रत खुलेगा। इसके बाद ही व्रत फिर शुरू हो जाएगा और मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक व्रत जारी रहेगा। छठ पूजा केचारों दिन के विधि-विधान- पहले दिन : नहाय-खाय (कार्तिक शुक्ल चतुर्थी)प्रक्रिया: इस दिन व्रती अपने घर की साफ-सफाई करते हैं और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भोजन में केवल एक समय शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण किया जाता है जिसमें कद्दू की सब्जी, चना दाल और चावल प्रमुख हैं।- द्वितीय दिन : खरना (कार्तिक शुक्ल पंचमी)प्रक्रिया: व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को विशेष पूजा के बाद रसियाव (गुड़ से बनी खीर) और रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है। प्रसाद को परिवार और आसपास के लोगों में बांटा जाता है।- तृतीय दिन: संध्या अर्घ्य (कार्तिक शुक्ल षष्ठी)प्रक्रिया : व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को नदी, तालाब या जलाशय पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य (जल और दूध का मिश्रण) अर्पित करते हैं। प्रसाद के तौर पर बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल और अन्य प्रसाद सजाकर ले जाया जाता है।- चतुर्थ दिन: उषा अर्घ्य (कार्तिक शुक्ल सप्तमी)प्रक्रिया: सुबह तड़के उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। व्रती जल में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हैं और व्रत का समापन करते हैं। पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत संपन्न किया जाता है।
सूर्य उपासना का छठ पर्व आज से
नहाय-खाय के दौरान व्रती नहाने के बाद कद्दू एवं चावल खाएंगे। इसके बाद व्रत शुरू हो जाएगा। वह रविवार को पूरा दिन व्रत रखेंगे व शाम को खरना में पकवान खाने के साथ व्रत खुलेगा। इसके बाद ही व्रत फिर शुरू हो जाएगा और मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक व्रत जारी रहेगा। छठ पूजा केचारों दिन के विधि-विधान- पहले दिन : नहाय-खाय (कार्तिक शुक्ल चतुर्थी)प्रक्रिया: इस दिन व्रती अपने घर की साफ-सफाई करते हैं और स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। भोजन में केवल एक समय शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण किया जाता है जिसमें कद्दू की सब्जी, चना दाल और चावल प्रमुख हैं।- द्वितीय दिन : खरना (कार्तिक शुक्ल पंचमी)प्रक्रिया: व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को विशेष पूजा के बाद रसियाव (गुड़ से बनी खीर) और रोटी का प्रसाद तैयार किया जाता है। प्रसाद को परिवार और आसपास के लोगों में बांटा जाता है।- तृतीय दिन: संध्या अर्घ्य (कार्तिक शुक्ल षष्ठी)प्रक्रिया : व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को नदी, तालाब या जलाशय पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य (जल और दूध का मिश्रण) अर्पित करते हैं। प्रसाद के तौर पर बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल और अन्य प्रसाद सजाकर ले जाया जाता है।- चतुर्थ दिन: उषा अर्घ्य (कार्तिक शुक्ल सप्तमी)प्रक्रिया: सुबह तड़के उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। व्रती जल में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते हैं और व्रत का समापन करते हैं। पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत संपन्न किया जाता है।

