Report By : ICN Network
भारत के प्रधान न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने महाराष्ट्र विधानमंडल के विशेष सम्मान समारोह में कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर का स्पष्ट मत था कि संविधान सर्वोच्च है और न्यायपालिका को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त रहना चाहिए। उन्होंने इसे लोकतंत्र की मूल आत्मा बताया और कहा कि संविधान देश में “रक्तहीन क्रांति” का सबसे शक्तिशाली माध्यम बना है।
जस्टिस गवई ने यह वक्तव्य महाराष्ट्र विधानसभा व विधान परिषद की ओर से उनके अभिनंदन के अवसर पर दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर का मानना था कि संविधान को समय के अनुसार विकसित होते रहना चाहिए, ताकि बदलती पीढ़ियों की जरूरतें पूरी की जा सकें।
उन्होंने याद दिलाया कि संविधान ने न केवल सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त किया है, बल्कि महिलाओं और पिछड़े वर्गों को भी राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री, महिला राष्ट्रपतियों और विभिन्न उच्च पदों पर बैठे पिछड़े समुदाय के नेताओं का उल्लेख करते हुए संविधान की समावेशी शक्ति को रेखांकित किया।
जस्टिस गवई ने कहा कि तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को संविधान ने अलग-अलग अधिकार और सीमाएं तय की हैं, और यह न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि कानून संविधान की सीमाओं के भीतर बने और लागू हों।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आंबेडकर ने मौलिक अधिकारों की सार्थकता के लिए आवश्यक सुरक्षा उपायों और लचीले संघवाद की वकालत की थी।
अपने संबोधन के अंत में, उन्होंने महाराष्ट्र विधानमंडल द्वारा मिले सम्मान को व्यक्तिगत रूप से खास बताया, क्योंकि उनके पिता आर. एस. गवई भी लंबे समय तक राज्य की विधान परिषद से जुड़े रहे और विभिन्न राज्यों के राज्यपाल रह चुके हैं।