Report By : ICN Network
फिक्स्ड डिपॉज़िट (एफडी) भारतीय निवेशकों के बीच एक लोकप्रिय विकल्प है, क्योंकि यह सुरक्षित होता है और एक निश्चित ब्याज देता है। लेकिन बहुत से लोग इस बात से अनजान होते हैं कि एफडी से मिलने वाला ब्याज आयकर के दायरे में आता है।
जब भी आपकी एफडी से अर्जित कुल ब्याज सालाना ₹40,000 (सीनियर सिटीजन के लिए ₹50,000) से अधिक हो जाता है, तो बैंक उस पर टीडीएस (टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स) काट लेता है। वर्तमान में टीडीएस की दर 10% है। अगर आपने बैंक को अपना पैन कार्ड नहीं दिया है, तो यह दर बढ़कर 20% हो जाती है। ध्यान दें, यह कटौती तब भी होती है जब आप एफडी को मैच्योर होने से पहले तोड़ते हैं।
एफडी पर जो भी ब्याज मिलता है, वह आपकी ‘अन्य स्रोतों से आय’ (Income from Other Sources) में शामिल होता है। इस आय को आपकी कुल वार्षिक आय में जोड़कर उसी स्लैब के हिसाब से टैक्स लगाया जाता है, जिसमें आप आते हैं। यदि आपकी कुल सालाना आय टैक्स के दायरे में नहीं आती, तब भी बैंक टीडीएस काट सकता है—जब तक कि आप एक जरूरी फॉर्म जमा नहीं करते।
यदि आपकी सालाना आय टैक्स की सीमा से कम है, तो आप फॉर्म 15G (गैर-सीनियर) या फॉर्म 15H (सीनियर सिटीजन) बैंक में भरकर जमा कर सकते हैं। इससे बैंक को जानकारी मिलती है कि आपकी आय टैक्स योग्य नहीं है और वे टीडीएस नहीं काटते। इन फॉर्म्स को हर वित्तीय वर्ष की शुरुआत में देना जरूरी है।
हां, आप टैक्स-सेविंग एफडी में निवेश कर सकते हैं, जो 5 साल के लॉक-इन पीरियड के साथ आता है। यह निवेश इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80C के तहत आता है, जिसके तहत आप ₹1.5 लाख तक की टैक्स छूट पा सकते हैं। लेकिन इस एफडी को 5 साल से पहले नहीं तोड़ा जा सकता और उस पर मिलने वाला ब्याज टैक्स योग्य ही रहेगा।
टैक्स की गणना उस समय होती है जब ब्याज वास्तव में मिलता है या बैंक उसे आपके अकाउंट में जोड़ता है, भले ही आपने वह राशि निकाली हो या नहीं। मतलब अगर आपका एफडी साल के अंत में मैच्योर हो रहा है लेकिन उस पर हर तिमाही ब्याज जुड़ रहा है, तो हर तिमाही मिलने वाला ब्याज टैक्स के अंतर्गत आएगा।
एफडी एक सुरक्षित निवेश है, लेकिन उस पर लगने वाला टैक्स भी समझना ज़रूरी है। टीडीएस की सीमा, दर, फॉर्म 15G/15H और टैक्स-सेविंग एफडी जैसे विकल्पों की जानकारी से आप अपने निवेश को और ज़्यादा समझदारी से संचालित कर सकते हैं। यह जानना जरूरी है कि फिक्स्ड डिपॉज़िट से मिलने वाला ब्याज आपकी इनकम का हिस्सा होता है, और आयकर नियमों के तहत इसका सही तरीके से हिसाब किया जाना चाहिए।