Lucknow Bus AccidentLucknow Bus Accident: लखनऊ की काकोरी तहसील में गुरुवार शाम को बेहता नदी पुल के पास एक दिल दहला देने वाला हादसा हो गया, जब कैसरबाग डिपो की रोडवेज बस 45 फीट गहरे गड्ढे में धंस गई। बस ने कई बार उलट-पुलट खाई, उसके पहिए आसमान छूने लगे, और पूरा इलाका चीख-पुकार से गूंज उठा। बस में कुल 44 यात्री सवार थे, जो हरदोई से लखनऊ की ओर जा रहे थे। इस भयावह सड़क हादसे में पांच लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि चालक अनिल कुमार वर्मा और परिचालक मोहम्मद रेहान समेत 19 यात्री गंभीर रूप से जख्मी हो गए।
घायलों को सबसे पहले काकोरी सीएचसी ले जाया गया, लेकिन हालत बिगड़ने पर ट्रॉमा सेंटर में रेफर कर दिया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत संज्ञान लेते हुए अधिकारियों को राहत-बचाव कार्य तेज करने और घायलों को बेहतरीन इलाज उपलब्ध कराने के सख्त निर्देश दिए। यह हादसा न केवल सड़क सुरक्षा की पोल खोल रहा है, बल्कि प्रशासन की त्वरित प्रतिक्रिया को भी रेखांकित कर रहा है।
हादसे की असल वजह पर सस्पेंस: कंडक्टर का बयान vs चश्मदीद की गवाही, बाइक सवारों की भूमिका?
हादसे की जड़ में क्या छिपा है, यह सवाल अभी भी अनसुलझा है। परिचालक मोहम्मद रेहान, जो खुद घायल हैं, ने बताया कि शाम करीब सात बजे अचानक सामने एक बाइक सवार को बचाने के चक्कर में आगे चल रहा ट्रैक्टर-टैंकर अनियंत्रित होकर पलट गया। उसी पल तेज रफ्तार बस ट्रैक्टर-टैंकर से जोरदार टक्कर मारकर गहरे गड्ढे में लुढ़क पड़ी। लेकिन चश्मदीद प्रत्यक्षदर्शी साहा ने एक अलग ही कहानी बयान की – उनके मुताबिक, बस खुद बेकाबू रफ्तार में थी। पहले उसने आगे जा रहे ट्रैक्टर-टैंकर को ठोक दिया, फिर बाइक सवारों को अपनी चपेट में लेते हुए गड्ढे में समा गई। इस बयानों के अंतर ने हादसे की जांच को और जटिल बना दिया है। क्या बस की लापरवाही थी, या ट्रैक्टर-टैंकर की गलती? पुलिस इस पर गहन जांच कर रही है, लेकिन यात्रियों के परिवारों के लिए यह सवाल मौत का कारण जानने का इंतजार करा रहा है।
ग्रामीणों की बहादुरी और बचाव अभियान: जेसीबी-क्रेन से बस काटी, फंसे लोगों को खोदा गया बाहर
दुर्घटना स्थल पर सबसे पहले टिकैतगंज गांव के बहादुर ग्रामीण पहुंचे, जिन्होंने यात्रियों की चीखें सुनते ही बस को सीधा करने का जोखिम भरा प्रयास शुरू कर दिया। चीख-पुकार के बीच उन्होंने जान जोखिम में डालकर कई जिंदगियां बचाईं। बाद में जेसीबी और क्रेन की मदद से बस का हिस्सा काटा गया, ताकि अंदर फंसे यात्रियों को बाहर निकाला जा सके। पुलिस, फायर ब्रिगेड, एसडीआरएफ के जवान, डीएम विशाख जी, पुलिस आयुक्त और कमिश्नर भी मौके पर पहुंचे और बचाव कार्य को चाक-चौबंद तरीके से अंजाम दिया। करीब 50 मिनट की मशक्कत के बाद दो गंभीर घायलों को ग्रीन कॉरिडोर बनाकर ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया, जहां उनका इलाज जारी है। यह सामूहिक प्रयास हादसे की भयावहता के बावजूद कई जिंदगियों को बचाने में सफल रहा।
मृतकों की पहचान: ट्रॉमा सेंटर में पुष्टि, परिवारों पर शोक की छाई काली घटा
ट्रॉमा सेंटर पहुंचने पर डॉक्टरों ने चार मृतकों की पहचान की – पीलीभीत के बाबू राम और जगदीश, मथुरा के नरदेव, बदायूं के एक यात्री, और काकोरी बुधड़िया के दिलशाद। डीएम विशाख जी ने पांचवीं मौत की पुष्टि की, जो हादसे की भयानकता को दर्शाती है। हादसे में दो बाइक सवार भी बस की चपेट में आ गए। एक बाइक पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई, जबकि एक युवक बस के बाएं हिस्से में बुरी तरह फंस गया। जब जेसीबी से बस हटाई गई, तो उसका शव बस से चिपका हुआ मिला – हालत इतनी दर्दनाक थी कि चिथड़े उड़ चुके थे। यह दृश्य बचावकर्मियों के लिए भी सदमा बन गया। मृतकों के परिवारों पर शोक की काली परत चढ़ गई है, और प्रशासन ने मुआवजे की घोषणा कर दी है।
सड़क सुरक्षा पर सवाल: क्या गड्ढे और लापरवाही ने लीं निर्दोष जिंदगियां?
यह हादसा उत्तर प्रदेश की सड़कों पर व्याप्त खामियों को आईना दिखा रहा है। बेहता नदी पुल के पास का गड्ढा और वाहनों की तेज रफ्तार – क्या ये ही मौतों की जड़ हैं? कंडक्टर और चश्मदीद के बयानों में अंतर से साफ है कि जांच में गहराई से पड़ताल जरूरी है। मुख्यमंत्री योगी के निर्देशों के बावजूद, ऐसे हादसे सवाल खड़े करते हैं कि सड़क रखरखाव और ड्राइविंग नियमों का पालन कितना सख्त है। घायलों का इलाज जारी है, लेकिन यह घटना पूरे राज्य को सतर्क कर रही है – सड़कें जानलेवा न बनें, इसके लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। यह दुखद घटना न केवल परिवारों का दर्द है, बल्कि सिस्टम की कमजोरियों का भी आईना है।