Report By: ICN Network
2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। साथ ही अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की गिरफ्तारी को लेकर किया गया दावा तथ्यों पर आधारित नहीं था और उसे खारिज कर दिया गया।
विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने 1,036 पन्नों के फैसले में कहा कि महाराष्ट्र एटीएस के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच अधिकारी मेहबूब मुझावर को मोहन भागवत की गिरफ्तारी का कोई आदेश नहीं दिया गया था। यह दावा आरोपी साधु सुधाकर धर द्विवेदी के वकील की ओर से किया गया था, जिसे अदालत ने प्रमाणों के अभाव में निराधार माना।
न्यायालय ने माना कि मेहबूब मुझावर का बयान और उनके द्वारा सोलापुर अदालत में 2016 में किया गया दावा इस केस में सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे न तो मामले में गवाह के तौर पर पेश हुए और न ही उनका दावा विश्वसनीय साक्ष्य से सिद्ध हुआ।
इसके अलावा, एटीएस के एसीपी मोहन कुलकर्णी ने भी अपने बयान में यह साफ किया कि मुझावर को आरएसएस से जुड़े किसी पदाधिकारी को लाने के लिए नहीं, बल्कि दो आरोपियों – रामजी कालसांगरा और संदीप डांगे – की तलाश में भेजा गया था। मुझावर ने उन दोनों की मौत की बात कही थी, जबकि पुलिस उन्हें अब भी जीवित मान रही है।
हालांकि उस समय मुझावर खुद एक अलग आपराधिक मामले में आरोपी थे और उनके दावे को बचाव का हिस्सा माना गया, न कि इस मामले से जुड़ा सटीक साक्ष्य। अदालत ने यह भी कहा कि दस्तावेजों या बयानों को सबूत तभी माना जा सकता है जब वे सुसंगत गवाही के साथ समर्थित हों, जो इस मामले में नहीं हुआ।
इस तरह कोर्ट ने मोहन भागवत की गिरफ्तारी से जुड़ा पूरा दावा अस्वीकार करते हुए साफ किया कि इस मामले में ऐसा कोई निर्देश कभी दिया ही नहीं गया था।