Report By : ICN Network
नासिक में वर्ष 2027 में आयोजित होने वाले सिंहस्थ कुंभ मेले में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है। अब पारंपरिक शाही स्नान की जगह अमृत स्नान की परंपरा लागू की जाएगी। यह निर्णय धार्मिक नेताओं, महंतों और अखाड़ों की सलाह के बाद लिया गया है, जिसका मकसद इस पावन आयोजन को आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से और अधिक शुद्ध एवं सार्थक बनाना है। शाही स्नान की परंपरा मुगल काल से चली आ रही थी, जिसमें राजाओं और प्रमुख संतों के भव्य स्नान की विशेषता होती थी। हालांकि अब इस परंपरा को बदलकर अधिक सरल और आध्यात्मिक स्नान के तौर पर अमृत स्नान अपनाया जाएगा, जो समुद्रमंथन की कथा से प्रेरित है। समुद्रमंथन के दौरान अमृत की कुछ बूँदें चार प्रमुख स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें नासिक भी शामिल है, इसलिए इसे ‘अमृत स्नान’ कहा जा रहा है।
इस बदलाव को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने नासिक में आयोजित बैठक में घोषणा की, जिसमें 13 प्रमुख अखाड़ों के संत और महंत शामिल हुए। मुख्यमंत्री ने बताया कि कुंभ मेले के आयोजन के लिए लगभग 6,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। इन परियोजनाओं में गोदावरी नदी की सफाई, साधुग्राम का निर्माण, सीवेज और जल प्रबंधन तथा मेले के बुनियादी ढांचे को विकसित करना शामिल है। इस विशाल आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को सर्वोपरि रखा जाएगा।
अमृत स्नान की मुख्य तिथियां निर्धारित की गई हैं, जिनमें 2 अगस्त, 31 अगस्त और 11-12 सितंबर 2027 शामिल हैं। इन तिथियों पर श्रद्धालु और संत गोदावरी नदी में पवित्र स्नान करेंगे। इसके साथ ही अखाड़ों की शोभायात्राएं भी आयोजित होंगी, जो मेले के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को बढ़ाएंगी। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई और आध्यात्मिकता का भी विश्व स्तर पर प्रदर्शन करेगा।
यह बदलाव नासिक कुंभ मेले के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेगा और धार्मिक दृष्टि से इसे और अधिक प्रभावशाली बनाएगा। साथ ही, यह परंपरा आने वाले वर्षों में श्रद्धालुओं के बीच आध्यात्मिक शुद्धता और एकजुटता की भावना को भी मजबूत करेगी। इस तरह से नासिक कुंभ मेला 2027 एक नयी ऊर्जा और आध्यात्मिक महत्व के साथ दुनिया के सामने प्रस्तुत होगा।