एनसीआर में GRAP-3 लागू होते ही निर्माण गतिविधियों पर रोक लग गई है। क्रेडाई वेस्टर्न यूपी ने डेवलपर्स को निर्देश दिया है कि वे प्रदूषण नियंत्रण संबंधी सभी गाइडलाइंस का पालन करें—जिसमें प्रदूषण फैलाने वाले कार्यों को बंद करना और साइट पर नियमित पानी का छिड़काव शामिल है। डेवलपर्स का कहना है कि वे इन नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे, लेकिन साथ ही उन्होंने सरकार के सामने कुछ सुझाव भी रखे हैं, ताकि निर्माण और पजेशन पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सके।
आरजी ग्रुप के डायरेक्टर हिमांशु गर्ग का कहना है कि रियल एस्टेट प्रोजेक्ट एक-दूसरे से जुड़े चरणों में चलते हैं। ऐसे में एक स्टेज पर काम रुकने से पूरा प्रोजेक्ट प्रभावित हो जाता है। 15–20 दिन की रोक कई बार दो–तीन महीने की देरी में बदल जाती है, जिससे होमबायर्स की उम्मीदों और डेवलपर्स की ब्रांड वैल्यू पर असर पड़ता है।
रेनॉक्स ग्रुप के चेयरमैन शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि निर्माण बंद होते ही मजदूर पलायन करने लगते हैं। फिर काम दोबारा शुरू होने पर लेबर वापस लाने में समय लगता है, जिससे परियोजना की लागत बढ़ जाती है और शेड्यूल बिगड़ जाता है। इसका सीधा असर घर खरीदारों को मिलने वाले पजेशन पर पड़ता है।
डिलिजेंट बिल्डर्स के सीओओ ले. कर्नल अश्वनी नागपाल (रिटा.) ने बताया कि हर बार GRAP लागू होने पर अंदरूनी निर्माण और कॉमन एरिया के डेवलपमेंट कार्य रुके रहते हैं, जिससे पजेशन की समयसीमा आगे बढ़ जाती है। उनका सुझाव है कि सरकार और प्राधिकरण मिलकर ऐसा सिस्टम बनाएं जिसमें प्रदूषण नियंत्रण और विकास, दोनों का संतुलन बना रहे।
क्रेडाई वेस्टर्न यूपी के प्रेसिडेंट दिनेश गुप्ता का कहना है कि जब निर्माण सरकारी आदेश से बंद होता है, तो यह डेवलपर की गलती नहीं होती। ऐसे में रेरा को 1–2 महीने का ऑटोमैटिक एक्सटेंशन देना चाहिए, ताकि प्रोजेक्ट की टाइमलाइन प्रभावित न हो।
निराला वर्ल्ड के सीएमडी सुरेश गर्ग का कहना है कि जो डेवलपर्स एंटी-स्मॉग गन, डस्ट कंट्रोल सिस्टम और ग्रीन कंस्ट्रक्शन तकनीक का उपयोग कर रहे हैं, उन्हें सीमित शर्तों के साथ काम जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने की बजाय संतुलित समाधान बेहतर होगा।