दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ सख्ती बढ़ा दी है। जुर्माना न भरने वालों से वसूली के लिए जिला प्रशासन को शामिल किया गया है। नए नियमों के तहत जुर्माना लगाने से लेकर वसूली तक की समय सीमा तय की गई है। पिछले पांच सालों में डीपीसीसी केवल 11 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूल पाई है।
राष्ट्रीय राजधानी में पर्यावरण का क्षति पहुंचाना अब और भारी पड़ेगा। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने मौजूदा नियमों को सख्त करते हुए जुर्माना नहीं भरने वालों के खिलाफ जिला प्रशासन की ओर से वसूली (रिकवरी) की कार्रवाई का प्रविधान भी कर दिया है।
गौरतलब है कि पर्यावरण को क्षति पहुंचाने के मामले में वाटर (प्रिवेंशन एंड कंट्रोल आफ पल्यूशन) एक्ट 1974 के नियमानुसार डीपीसीसी जुर्माना लगाने की कार्रवाई करता रहा है। लेकिन जुर्माना अदायगी की कोई समय सीमा तय नहीं होने और सख्ती के अभाव में उल्लंघनकर्ता जुर्माने की राशि भरते ही नहीं थे।
कुछ कोर्ट चले जाते थे तो कुछ आधा अधूरा भरकर इतिश्री कर लेते थे। उल्लंघनकर्ताओं के इसी ढुलमुल रवैये के प्रति सख्ती का परिचय देते हुए डीपीसीसी ने जुर्माना वसूली के लिए पहली बार मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इसमें जुर्माना लगाने से लेकर वसूली तक के लिए निश्चित समय सीमा निर्धारित कर दी गई है।डीपीसीसी के मुताबिक नियमों का उल्लंघन करने वाले उद्यम के निरीक्षण करने के पांच कार्यदिवसों के भीतर ही उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा। यह नोटिस स्पीड पोस्ट या ई-मेल के जरिए भेजा जाएगा। इसका जवाब देने के लिए उक्त प्रतिष्ठान को 15 दिन का समय मिलेगा।
इस प्रक्रिया पर हुई कार्रवाई पर 21 से 30 दिन के भीतर रिपोर्ट तैयार की जाएगी। जबकि, कारण बताओ नोटिस जारी करने के 60 दिन के भीतर पर्यावरण क्षति का जुर्माना वसूलने के आदेश जारी किए जाएंगे। 90 दिन के भीतर पर्यावरण क्षति शुल्क जमा नहीं किए जाने पर रिकवरी के लिए मामले को एसडीएम के पास भेज दिया जाएगा।डीपीसीसी अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि नियमों में बदलावों के बाद पर्यावरण क्षति शुल्क की वसूली में तेजी आएगी। साथ ही पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वाले मामलों में भी कमी आने की संभावना है।