Report By : ICN Network
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मंबई निवासी महिला की गुज़ारा भत्ते (एलीमनी) की मांग पर कड़ी टिप्पणी करते हुए उसे तर्कहीन बताया है। महिला ने अपने पति से 12 करोड़ रुपये, एक बीएमडब्ल्यू कार और एक आलीशान घर की मांग की थी। अदालत ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा, “आप इतनी शिक्षित हैं, तो काम कर सकती हैं।”
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुनवाई के दौरान महिला से सवाल किया कि जब वह स्वयं योग्य और शिक्षित है, तो फिर इतनी बड़ी राशि और सुविधाएं मांगने का आधार क्या है? अदालत ने साफ कहा कि गुज़ारा भत्ता ज़रूरतमंद के लिए होता है, न कि ऐशोआराम की ज़िंदगी के लिए।
मामले में महिला ने दावा किया था कि वह शादी के बाद काम नहीं कर सकी और अब पति से आर्थिक सहयोग की हकदार है। लेकिन कोर्ट ने उसकी शैक्षणिक योग्यता और संभावित कमाई की क्षमता को देखते हुए यह कहा कि वह अपने जीवन का खर्च खुद चला सकती है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पति पर इतना वित्तीय बोझ डालना न्यायसंगत नहीं है, खासकर तब जब महिला खुद आत्मनिर्भर बन सकती है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह टिप्पणी भी की कि भत्ते की अवधारणा किसी व्यक्ति को आर्थिक रूप से नाकाम बनाए रखने के लिए नहीं है, बल्कि उसे सम्मानजनक जीवन जीने का समर्थन देने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर उन मामलों में जहां एलीमनी की मांग हद से ज़्यादा हो जाती है।