Report By : ICN Network (Pankaj Srivastava)
धर्म नगरी चित्रकूट प्रभु श्री राम की तपोस्थली रही है। यहां प्रभु श्री राम माता जानकी, भाई लक्ष्मण के साथ अपने वनवास काल के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे। इस दौरान भगवान श्री राम ने जंगल पर निर्भर थे. कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान कंदमूल नामक फल खाकर बिताया था।कंदमूल को कई स्थानों पर राम फल के नाम से भी जाना जाता है।
चित्रकूट के महत दिव्य जीवन दास ने बताया कि बनवास कल के दौरान चित्रकूट में श्री राम कंदमूल फल का सेवन करते थे और उसी के माध्यम से उनकी दिनचर्या चलती थी. उन्होंने बताया कि कद मूल फल ऋषि मुनि तपस्या के दौरान तपस्या करते गए और इसी फल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते गए. इसीलिए प्रभु श्री राम ने भी ऋषि मुनियों के प्रसाद के स्वरूप इसका सेवन करते गए. उनका मानना था की यह ऋषियों के प्रसाद का सेवन करने से उनको जो शक्ति प्राप्त होगी. वह शक्ति राक्षसों का वध कर करने में लाभ दायक होगी।
कंदमूल खाने से जल्दी नहीं लगती है भूख –
कथाओं के अनुसार, 14 वर्षों तक भगवान राम, सीता, और भाई लक्ष्मण ने कंदमूल खाकर अपना जीवन व्यतीत किया था. दरअसल, इसे खाने के बाद जल्दी भूख नहीं लगती थी. कंदमूल फल खाने से पेट लंबे समय तक भरा रहता था और ऊर्जा मिलती थी. श्री राम ने यह फल ऋषि मुनियों का प्रसाद समझकर ग्रहण किया था ताकि उनको राक्षसों का वध करने की शक्ति आ सके।
10 रूपए का एक पीस मिलता है फल –
इसीलिए चित्रकूट में इन फलों का महत्व आज भी देखा जा सकता है. चित्रकूट के परिक्रमा मार्ग में आज भी कंदमूल के फल देखे जाते हैं. चित्रकूट के संतों का मानना है कि इसे खाने के बाद आपके मन को शांति मिलती है. वहीं कंदमूल फल बेच रहे घनश्याम ने बताया की यह फल भगवान श्री राम का प्रसाद है क्योंकि वनवास काल के दौरान भगवान राम ने इसको 14 वर्ष खाया था।इसको चित्रकूट आने वाले भक्त जरूर लेकर खाते हैं। यह फल हम लोग नासिक से चित्रकूट लाते हैं और 10 रूपए पीस बेचते हैं।