Report By-Anil Kumar Ghazipur(UP)
यूपी के गाज़ीपुर में अपनी आगामी अंग्रेजी पुस्तक “Ghazipur A Journey Through Political & Cultural History From Ancient Period To Pre Independence” को लिखते समय अनेक संस्कृत, उर्दू एवम् फ़ारसी पांडुलिपियों को देखा है, जो ऐसे ही जनपद के अलग अलग क्षेत्रों में पड़ी हैं. गांव गौसपुर में एक बहुमूल्य गाजीपुर के इतिहास पर संस्कृत पांडुलिपि स्थानीय ज्यूत बंधन सिंह के पास 1712 ईस्वी लिखित है, इसके अतिरिक्त अनेक हिंदी, फारसी उर्दू की पांडुलिपिया जांगीपुर, चौकिया, मखदूमपुर , नोनहरा पारा, शहर के ओरिएंटल कालेज मदरसा चशमय रहमत ( 50 से ऊपर ) बिखरी पड़ी है जिनका कोई सुध लेने वाला नही है। जबकि जनपद की अनेक साहित्यिक, धार्मिक, ऐतिहासिक पांडुलिपियां रामपुर रजा लाइब्रेरी, नेशनल आर्काइव दिल्ली, रघुबीर लाइब्रेरी जयपुर आर्काइव, खुदा बक्श लाइब्रेरी पटना, स्टेट आर्काइव लखनऊ, रीजनल आर्काइव प्रयाग राज के अलावा शहर में ब्रिटिश शासन में एक स्पेशल सेल खोला गया था।
भगवद्गीता महाभारत के भीष्मपर्व से उद्धृत है। इसमें 700 श्लोक हैं। कुरुक्षेत्र की भूमि में अर्जुन को श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था वही उद्धृत है। पांडुलिपि संख्या – 4229 इसका फारसी अनुवाद शेख फैज़ी ने 1005 हिजरी/1596-97 सन् में किया था। 4.राजतरंगिणी – रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में राजतरंगिणी की जो पांडुलिपि उपलब्ध है वह राजतरंगिणी नहीं है अपितु ‘ तारीखे कश्मीर ‘ नाम से है। इस पांडुलिपि में कश्मीरी स्कॉलर डॉ॰ रसूल खान का नोट लगा है कि ये राजतरंगिणी नहीं है क्योंकि इसमें तारीखे औरंगजेब तक बयान की गई हैं जो कि राजतरंगिणी का अंश नहीं है। पांडुलिपि संख्या -2136 राजतरंगिणी का फारसी अनुवाद मुल्ला शाह मुहम्मद ने किया था। इस पांडुलिपि में उनका नाम नहीं है। 5- लीलावती – लीलावती गणित शास्त्र का ग्रन्थ है। यह भास्कराचार्य द्वारा रचित है तथा इसमें 13 अध्याय हैं। इसका रचनाकाल 1150 ई० एवं 625 श्लोकों में निबद्ध है। इस ग्रन्थ में अंकगणित, बीजगणित, एवं ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं। लीलावती की तीन पांडुलिपियाँ रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के संग्रह में हैं। क) पांडुलिपि संख्या -1229 मुगल शासक अकबर के आदेश पर लीलावती का फ़ारसी अनुवाद फैज़ी ने 995 हिजरी/1548-49 सन् में किया था। ख) पांडुलिपि संख्या- 1230 यह गद्य में है। इसके अनुवाद का समय 1247 हिजरी/1831-32 ई० है तथा अनुवादक अमानत अली खां हैं। ग) पांडुलिपि संख्या- 913 ब लीलावती की तृतीय पांडुलिपि में अन्य पत्रिकाएं भी सम्मिलित हैं जिनका प्रारम्भ जवाहर खम्सा मय रसायल इल्मे जफर से है। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में लीलावती छपी हुई भी उपलब्ध है जिसका प्रकाशन 1271 हिजरी/1854-55 ई० में अलवी प्रेस लखनऊ में हुआ था। रामायण-
रामायण को आदिकाव्य भी कहा जाता है। यह महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित है। इसमें सात अध्याय हैं जो कांडो के नाम से अभिहित हैं। 24000 श्लोकों में अनुष्टुम् छन्द में निबद्ध यह अत्यंत महत्वपूर्ण काव्य है। क) रामायण की अत्यंत महत्वपूर्ण पांडुलिपि रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में उपलब्ध है। इस पांडुलिपि को सुमेरचंद ने मुगल सम्राट फर्रूखसियर के शासनकाल 1128 हिजरी/ 1715-16 ईसवीं में फारसी अनुवाद किया था। पांडुलिपि की महत्ता का कारण इसमें उपलब्ध रंगीन चित्र हैं जिनकी संख्या 258 है जो किसी अन्य लिखित रामायण में इतनी संख्या में नहीं है। ख) पांडुलिपि संख्या – 4258 क मसीह पानीपती की दास्ताने रामो-सीता के नाम से पांडुलिपि उपलब्ध है जिसका अनुवाद जहाँगीर के काल में हुआ था। इसके आरम्भ में मुहम्मद साहब की नआत लिखी है। 7- जातक-पारिजात – यह ज्योतिष विद्या का ग्रंथ है। ज्योतिष में संहिता, होरा और सिद्धान्त यह तीन प्रधान विषय हैं। इनमें जातक-पारिजात होरा के अंतर्गत आता है। यह ग्रंथ 1347 शक अर्थात 1472 विक्रम में वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा रचा गया। क) पाण्डुलिपि संख्या – 1650 जातक-पारिजात का फ़ारसी अनुवाद ‘ तर्जुमा बरखजातक ‘ नाम से हुआ था। कृपानाथ बलदारी ने इसका अनुवाद किया। इस अनुवाद कार्य को शाहआलम के शासन काल (1186 हिजरी/1772-73 ई०) में सम्पन्न किया गया। ख) पाण्डुलिपि संख्या – 1252 मिर्ज़ा रौशन ज़मीर ने ‘ तर्जुमा पारजातक ‘ के नाम से अनुवाद किया।