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UP-अमेठी का कंबल कारखाना बंदी की कगार पर,बिल्डिंग की हालत हुई जर्जर

यूपी के अमेठी के गूंगवाछ में स्थित कंबल कारखाना अब बंदी की कगार पर पहुँच चुका है।हाइवे किनारे 9 बीघे बेशकीमती जमीन पर बने इस कंबल कारखाने में कच्चे माल की उपलब्धता न होने के कारण काम मे बाधा आरही है।अब सिर्फ एक वर्कर काम कर रहा है जो दिन भर में पांच से 6 कंबलों को तैयार करता है।कभी इस फैक्ट्री में सैकड़ो को रोजगार मिला था लेकिन आज ये कारखाना प्रशासनिक और राजनैतिक उदासीनता के कारण बदहाली का शिकार होता जा रहा है।कारखाने की दीवाल और छत भी जर्जर अवस्था मे पहुँच चुके है जो कभी भी बड़ी घटना का कारण बन सकते है।

दरअसल अमेठी में स्थानीय लोगों को रोजगार देने के लिए 1988 में जिस कंबल कारखाने का पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी ने निर्माण कराया अब वो बदहाली की स्थिति में चला गया।2019 में एक बार फिर स्थानीय पूर्व विधायक के अथक प्रयास के बाद सालों से बंद पड़ा कारखाना शुरू तो हुआ लेकिन उसकी हालत ज्यादा नहीं बदली।जरूरी सामान की आपूर्ति नहीं होने की वजह से ये कारखाना एक बार फिर से बंद होने की कगार पर पहुँच चुका है।जिस कंबल कारखाने में कभी सैकड़ों लोग काम करते थे और उनके परिवार का भरण पोषण होता था आज वहां सिर्फ एक कर्मचारी ही रह गया हैं. राजीव गांधी ने रखी थी कारखाने की आधारशिलासाल 1988 में पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 राजीव गांधी ने अमेठी के दुर्गापुर रोड पर गुंगवांछ मे 9 बीघा जमीन पर एक कंबल कारखाने की आधारशिला रखी थी।कुछ महीनों बाद ही ये कारखाना बनकर भी तैयार हो गया. कुछ सालों तक इस कारखाने में अच्छे से काम भी हुआ लेकिन कुछ सालों बाद अचानक ही यहां पर कम्बल निर्माण कार्य बंद हो गया। लोगों की काफी कोशिशों और पत्राचार के बाद स्थानीय पूर्व विधायक गरिमा सिंह की पहल पर चंद संविदाकर्मियों के साथ एक बार फिर से यहां पर निर्माणकार्य शुरू हो गया लेकिन अब एक बार फिर से ये बदहाली के स्तर पर पहुंच रहा है. सामग्री के अभाव में कारखाना बदहालये कंबल कारखाना अब सामग्री के अभाव में बेकार होता जा रहा है।एक बार धागा खत्म हो जाता है तो आने में महीनों का समय लग जाता है. जिससे निर्माण काम में बाधा उत्पन्न होती थी।9 बीघे की बेशकीमती भूमि पर बना कंबल कारखाना जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के चलते जर्जर होने लगा जो बड़े हादसे को दावत दे रहा है।कंबल कारखाने में तैनात सहायक अनुदेश की माने तो अब काम नहीं चल रहा है पहले ज़ब कारखाना चलता था तो सामान ख़त्म होने पर बाहर से सामान मंगाया जाता था।जिस धागा को आने में महीनों का समय लग जाता था।जब कम्बल बनता था तो इसे फिनिशिंग के लिए मिर्जापुर भेजा जाता है वहाँ से इसे अस्पतालों जेलों आदि में भेजा जाता है।वही कंबल कारखाना के मैनेजर अमर भान सिंह ने कहा कि अभी सिर्फ एक मशीन ही काम कर रही जिस पर एक वर्कर काम कर रहा है।रोजाना 5 से 6 कंबलों का निर्माण हो जाता है।

By ICN Network

Ankit Srivastav (Editor in Chief )

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