उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के जगत जननी सीता माता का मन्दिर वनदेवी। जहाँ आज भी यह वनदेवी स्थान श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है। वनदेवी मन्दिर अपनी प्राकृतिक गरिमा के साथ-साथ पौराणिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों का प्रेरणा स्रोत भी है। जनश्रुतियों एवं भौगोलिक साक्ष्यों के आधार पर यह स्थान महर्षि बाल्मिकी की साधना स्थली के रूप में विख्यात रहा है।
वही ये भी कहा जाता है कि माता सीता ने भी अपने अखण्ड पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए यहीं पर अपने पुत्रों लव-कुश को जन्म दिया था। यह स्थान साहित्य साधना के आदि पुरुष महर्षि बाल्मिकी एवं सम्पूर्ण भारतीयता का प्रतीक भगवान राम तथा माता सीता से जुड़ा हुआ है। जनश्रुति के अनुसार नर्वर के रहने वाले सिधनुआ बाबा को स्वप्न दिखाई दिया कि देवी की प्रतिमा जंगल में जमीन के अंदर दबी पड़ी है। देवी ने बाबा को उक्त स्थल की खुदाई कर पूजा पाठ का निर्देश दिया।
स्वप्न के अनुसार बाबा ने निर्धारित स्थल पर खुदाई प्रारम्भ की तो उन्हें मूर्ति दिखाई दी। बाबा के फावड़े की चोट से मूर्ति क्षतिग्रस्त भी हो गयी। बाबा जीवन पर्यन्त वहाँ पूजन-अर्चन करते रहे। वृद्धावस्था में उन्होंने उक्त मूर्ति को अपने घर लाकर स्थापित करना चाहा लेकन वे सफल नहीं हुए और वहीं उनका प्राणांत हो गया बाद में वहाँ मन्दिर बनवाया गया। वनदेवी मन्दिर अनेक साधु-महात्मा एवं साधकों की तपस्थली भी रहा है। इस क्षेत्र में रहे अनेक साधु – महात्माओं में लहरी बाबा की विशेष ख्याति है।