Report By : ICN Network
पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण को लेकर प्रक्रिया तेज हो गई है। इसके लिए ट्रांजैक्शन एडवाइजर नियुक्त करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। शनिवार को टेक्निकल बिड खोली गई, जिसमें तीन प्रमुख कंपनियों ने आवेदन किया है। जल्द ही इनमें से किसी एक को फाइनेंशियल बिड के आधार पर अंतिम रूप से चुना जाएगा।
ट्रांजैक्शन एडवाइजर के लिए अर्नस्ट ऐंड यंग (E&Y), डेलॉयट और ग्रैंड थॉर्नटन ने क्वालीफाई किया है। अब अगला चरण फाइनेंशियल बिड का होगा, जिसके बाद चयनित कंपनी को इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाएगी।
हालांकि, इस प्रक्रिया के विरोध में प्रदेशभर में बिजली इंजीनियरों ने जोरदार प्रदर्शन किया। शक्ति भवन समेत कई अन्य स्थानों पर बिजली इंजीनियरों ने निजीकरण का विरोध जताया और आरोप लगाया कि बिड में ऐसी कंपनियों को शामिल किया गया है, जो पहले से ही बड़ी बिजली कंपनियों के साथ काम कर रही हैं।
ट्रांजैक्शन अडवाइडर की टेक्निकल बिड खोले जाने के बाद बिजली कर्मचारियों के सभी संगठनों ने एक मंच पर आकर शनिवार को प्रदर्शन किया। इस मौके पर संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे और पावर ऑफिसर्स असोशिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने शक्ति भवन पर हुई सभा में ऐलान किया कि किसी भी समय आंदोलन शुरू करने के लिए सभी संगठन पूरी तरह लामबंद हैं। उन्होंने इसके लिए सभी बिजली कर्मियों को अलर्ट रहने का आह्वान किया।
संघर्ष समिति ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के नाम पर बड़ा घोटाला हो रहा है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि यह पता चला है कि कॉनफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट (हितों के टकराव) के बेहद जरूरी प्रावधान का उल्लंघन करते हुए पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन ने ऐसी कंपनियों से बीड ले ली है जो बड़ी बिजली कंपनियों के साथ काम कर रही हैं। इनमें से एक कंपनी उप्र सरकार की एक ट्रिलियन योजना में भी काम कर रही है।
संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि निजीकरण के जरिए पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन दक्षिणांचल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम की लाखों करोड़ की संपत्ति कौड़ियों के दाम बेचने की तैयारी कर रहा है। सीवीसी की गाइडलाइंस का उल्लंघन कर निजीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है।
संगठन का कहना है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम से जुड़ी 42 जिलों की बहुमूल्य परिसंपत्तियों का उचित मूल्यांकन नहीं किया गया है। जबकि, नियमानुसार निजीकरण से पहले परिसंपत्तियों का आकलन अनिवार्य है। इसके बावजूद आरएफपी डॉक्यूमेंट में परिसंपत्तियों की आरक्षित कीमत 1500-1600 करोड़ रुपये रखी गई है, जो एक बड़े घोटाले की आशंका पैदा करता है।
संगठन ने आगे कहा कि इन परिसंपत्तियों का मूल्यांकन और राजस्व क्षमता (Revenue Potential) का सही आंकलन भी नहीं किया गया। इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट 2003 की धारा 131 के तहत, राजस्व क्षमता निकाले बिना निजीकरण की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। लेकि