दरअसल, 21 सितंबर को आयोजित इस परीक्षा के दौरान विभिन्न परीक्षा केंद्रों से नकल की शिकायतों का अंबार लग गया था। इन आरोपों की गहराई को महसूसते हुए राज्य सरकार ने जांच आयोग अधिनियम, 1952 की धारा 3 के तहत न्यायिक जांच के आदेश जारी किए हैं। यह कदम न केवल दोषियों को चिह्नित करेगा, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की जड़ें काटने का संकल्प भी दर्शाता है। पहली पसंद से इनकार, ध्यानी जी बने कमान संभालने वाले योद्धा
शुरुआत में सरकार ने इस जिम्मेदारी को सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बी.एस. वर्मा को सौंपने का इरादा किया था, लेकिन व्यक्तिगत कारणों और समय की कमी का हवाला देकर उन्होंने इसे ठुकरा दिया। ऐसे में, सरकार ने तुरंत उत्तराखंड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति यू.सी. ध्यानी को आयोग का चेयरमैन नियुक्त कर दिया। उनके नेतृत्व में यह आयोग सच्चाई की तलाश में कोई कसर न छोड़ेगा। आयोग की ताकत: सहायता से लेकर कानूनी सलाह तक, राज्यव्यापी जांच का दायरा
आदेशों के मुताबिक, आयोग को आवश्यकता पड़ने पर अन्य अधिकारियों, विशेषज्ञों और गवाहों से सहायता लेने की पूरी छूट होगी। इसका अधिकार क्षेत्र पूरे उत्तराखंड पर फैला होगा, जहां विभिन्न स्रोतों से आई शिकायतें, सूचनाएं और तथ्य गहन जांच के दायरे में आएंगे। खास बात, 24 सितंबर को गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट को भी आयोग आधार बनाएगा और जरूरत अनुसार कानूनी सलाह मुहैया कराएगा। रिपोर्ट का इंतजार: एक महीने में आएगी सच्चाई, कार्रवाई का वादा
सरकार की ओर से उम्मीद जताई गई है कि आयोग जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपेगा, जिसका लक्ष्य एक महीने के भीतर पूरा करना है। यह समयसीमा न केवल जांच की गति को दर्शाती है, बल्कि पीड़ित अभ्यर्थियों को न्याय दिलाने की प्रतिबद्धता भी। एक बार रिपोर्ट आने पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी, ताकि परीक्षा प्रणाली पर भरोसा बहाल हो सके। यह जांच उत्तराखंड के युवाओं के सपनों को सुरक्षित रखने का एक मजबूत कदम साबित होगी।


