सीपी राधाकृष्णन की जीतVice President Of India: जुलाई में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अप्रत्याशित इस्तीफे के बाद सी.पी. राधाकृष्णन ने देश के नए उपराष्ट्रपति के रूप में कमान संभाली है। उनकी जीत को एनडीए की संसदीय ताकत से ज्यादा, तमिलनाडु में उनकी गहरी पैठ और राजनीतिक छवि से जोड़ा जा रहा है। लंबे समय से तमिल राजनीति में बीजेपी की आवाज़ बने राधाकृष्णन का यह चयन द्रविड़ राजनीति के गढ़ को चुनौती देने का एक साहसिक कदम है। जवाब में, इंडिया गठबंधन ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारकर तेलुगु वोट बैंक को साधने की कोशिश की, मगर यह रणनीति कामयाब नहीं हुई।
बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक कितना कारगर?
विपक्ष को उम्मीद थी कि एनडीए के सहयोगी तमिल-तेलुगु अस्मिता के द्वंद्व में उलझ जाएंगे। लेकिन नतीजों ने साबित किया कि क्षेत्रीय भावनाएं इस बार बीजेपी की रणनीति पर भारी नहीं पड़ीं। असल सवाल यह है कि क्या राधाकृष्णन की जीत बीजेपी को तमिलनाडु जैसे द्रविड़-प्रधान राज्य में 2026 के विधानसभा चुनावों में दीर्घकालिक फायदा दिलाएगी, जहां द्रविड़ पहचान हमेशा उत्तर भारतीय राजनीति पर हावी रही है।
तमिलनाडु में बीजेपी की राह केरल जैसी ही कठिन है। अल्पसंख्यक मतदाता, उत्तर-भाषी विरोधी भावना और ब्राह्मण-विरोधी नैरेटिव बीजेपी के लिए चुनौतियां खड़ी करते हैं। डीएमके और एआईएडीएमके जैसे द्रविड़ दल इन मुद्दों को भुनाकर अपने वोटबैंक को मजबूत रखते हैं।
तमिलनाडु: बीजेपी की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी तमिलनाडु में अपनी जड़ें जमाने के लिए सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक कदम उठा रही है। नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना, काशी-तमिल संगमम का आयोजन, और गंगईकोंडा चोलपुरम मंदिर में मोदी की पूजा-अर्चना—ये सभी कदम तमिल गौरव से जुड़ाव का संदेश देते हैं। मोदी ने चोल वंश के सम्राट राजराजा चोल और राजेंद्र चोल की विशाल प्रतिमाएं स्थापित करने की घोषणा कर द्रविड़ दलों के तमिल विरासत वाले नैरेटिव को चुनौती दी है।
अन्नामलाई से राधाकृष्णन तक: बीजेपी का तमिल चेहरा
राधाकृष्णन की उपराष्ट्रपति पद पर ताजपोशी से पहले बीजेपी ने के. अन्नामलाई को तमिलनाडु में अपना चेहरा बनाया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में अन्नामलाई ने बीजेपी का वोट शेयर दहाई के आंकड़े तक पहुंचाया, लेकिन कोयंबटूर में उनकी हार ने उनके उभरते कद को झटका दिया। यह वही सीट है जहां से राधाकृष्णन कभी लोकसभा पहुंचे थे।
अन्नामलाई की आक्रामक शैली ने डीएमके और एआईएडीएमके को दबाव में ला दिया था। मगर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एआईएडीएमके के एनडीए छोड़ने के बाद बीजेपी ने रणनीति बदली। अब 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी अन्नामलाई को पीछे रखकर एआईएडीएमके से रिश्ते सुधारने की कोशिश में है, ताकि विपक्षी वोट बंटे और डीएमके को नुकसान हो।
तमिल राजनीति का नया सितारा: विजय
तमिलनाडु की सियासत में अब एक नया खिलाड़ी उभर रहा है—साउथ सुपरस्टार जोसेफ विजय। उनकी पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम ने राजनीति में कदम रखा है। एमजीआर, जयललिता और विजयकांत जैसे अभिनेताओं की तरह विजय भी अपनी लोकप्रियता का फायदा उठा सकते हैं। शुरुआती संकेत हैं कि वे ईसाई मतदाताओं और युवाओं में पैठ बना सकते हैं। बीजेपी और डीएमके—दोनों पर उनके हमले 2026 में सियासी समीकरण बिगाड़ सकते हैं।
बीजेपी के सामने लंबी जंग
तमिलनाडु में बीजेपी का वोट शेयर अभी भी 20% से काफी कम है, जबकि सत्ता की दहलीज तक पहुंचने के लिए कम से कम 35% वोट जरूरी हैं। एआईएडीएमके जैसे सहयोगियों पर निर्भरता ने बीजेपी को अल्पकालिक फायदे तो दिए, लेकिन उसकी स्वतंत्र पहचान कमजोर रही है। अगर बीजेपी को द्रविड़ राजनीति की जकड़ तोड़नी है, तो उसे लंबे समय तक अकेले चुनाव लड़ने और अन्नामलाई जैसे क्षेत्रीय चेहरों को मजबूत करने की जरूरत होगी।
राधाकृष्णन की जीत बीजेपी के लिए एक प्रतीकात्मक जीत है, लेकिन तमिलनाडु का सियासी गणित बदलने के लिए यह काफी नहीं है। 2026 का रण अभी दूर है, और बीजेपी को तमिल गौरव के साथ-साथ सामाजिक समीकरणों को साधने की कला में महारत हासिल करनी होगी। फिलहाल उसका तमिलनाडु अभियान अवसरवाद और साहसिक प्रयोगों का मिश्रण बना हुआ है।