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Death Anniversary Of Lal Bahadur Shastri…

ByIcndesk

Jan 11, 2024
Report By : ICN Network

जय किसान, जय जवान का नारा देने वाले और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है। शास्त्री जी ने 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी। एक सामान्य परिवार में जन्म और PM की कुर्सी पर चार चांद लगाने वाले, दुग्ध और हरित क्रांति के जनक लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर, 1904 को मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता रामदुलारी के घर हुआ था। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण शास्त्री को परिवार वाले प्यार से ‘नन्हे’ कहकर बुलाते थे। शास्त्री ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि हासिल की थी जिसके चलते ‘शास्त्री’ शब्द लाल बहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।

गरीबों की सेवा में लगा दिया था जीवन
वैसे तो अगर आप लाल बहादुर शास्त्री के किस्सों को पढ़ने बैठोंगे तो आपको बहुत कुछ जानने को मिलेगा। लेकिन क्या आपको पता है शास्त्री ने अपना सारा जीवन सादगी से गरीबों की सेवा में लगाया दिया था। स्वाधीनता संग्राम के 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन जैसे महत्वपूर्ण आन्दोलनों में इनकी अहम भागीदारी रही थी। इन आन्दोलनों के चलते शास्त्री को कई बार जेल भी जाना पड़ा था।

बात साल 1947 की है जब भारत को आजादी मिली। उस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार में पुलिस एवं परिवहन मंत्री बनाए गए लाल बहादुर शास्त्री। यहां भी शास्त्री की काफी चर्चा रही थी क्योंकि इस दौरान परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में इन्होंने पहली बार महिला संवाहकों (कंडक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद शास्त्री ने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिए पहली बार लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग किया था।

उत्तर प्रदेश में समय बिताने की बात 1951 में लाल बहादुर शास्त्री नई दिल्ली आए और केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री रहे। इस दौरान भी शास्त्री जनता और नेताओं के बीच काफी चर्चा में बने क्योंकि रेल मंत्री रहते एक रेल दुर्घटना के लिए शास्त्री ने खुद को जिम्मेदार मानते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दिया था, जिससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम हुई।

पाकिस्तान को 1965 के युद्ध में बुरी तरह हराया


लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व में देश ने पाकिस्तान को 1965 के युद्ध में काफी बुरी तरह हराया। इसके कुछ समय बाद एक साजिश के तहत शास्त्री को रूस बुलवाया गया, न्योते को शास्त्री ने स्वीकार भी कर लिया। इस दौरान शास्त्री पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर पाकिस्तान के जीते हुए इलाके उन्हें लौटाने के लिए ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करा लिए। शास्त्री ने ये बात कहते हुए हस्ताक्षर किए कि वह हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधानमंत्री ही लौटाएगा, वह नहीं। समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही 10/11 जनवरी, 1966 की रात में 1.32 बजे संदिग्ध परिस्थितियों में लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो गई। जिसके बाद मरणोपरान्त 1966 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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