Report By: ICN Network
मुंबई की गलियों में एक ऐसा वक्त भी था जब अंडरवर्ल्ड का खौफ हर आम आदमी की जिंदगी में समाया हुआ था। 90 के दशक में गोलीबारी, गैंगवार और सुपारी किलिंग जैसे शब्द माया नगरी के लिए आम हो चुके थे। दिनदहाड़े हत्याएं, रंगदारी वसूली और पुलिस की विवशता ने हालात बिगाड़ दिए थे। इसी अंधेरे दौर में पुलिस महकमे में एक ऐसा नाम उभरा जिसने अपराधियों की नींदें उड़ा दीं—दया नायक।
कर्नाटक के एक छोटे से गांव से मुंबई पहुंचे दया नायक ने पढ़ाई के साथ मजदूरी भी की और साल 1995 में महाराष्ट्र पुलिस सेवा में चयनित हुए। पहली पोस्टिंग जुहू पुलिस स्टेशन में मिली, जहां उनकी मुलाकात इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा से हुई। शर्मा ने उनकी कार्यशैली से प्रभावित होकर उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लिया। इसके बाद शुरू हुआ एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक का वो सफर, जिसने मुंबई के अंडरवर्ल्ड की जड़ों को हिला कर रख दिया।
छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम की गैंगों से जुड़े कई नामी गुर्गों को उन्होंने मुठभेड़ों में ढेर किया। करीब 80 एनकाउंटर का हिस्सा रह चुके दया नायक का नाम सुनते ही अंडरवर्ल्ड कांप उठता था। वे अंडरवर्ल्ड के खिलाफ खौफ का पर्याय बन गए। मीडिया और आम जनता के बीच उन्हें ‘रियल सिंघम’ और ‘अब तक 56’ जैसे उपनाम मिलने लगे।
उनकी कहानी पर आधारित फिल्म अब तक छप्पन ने उन्हें एक पॉप-कल्चर फिगर बना दिया। नाना पाटेकर द्वारा निभाया गया उनका किरदार लोकप्रिय हुआ, लेकिन यह प्रसिद्धि कुछ पुलिस अधिकारियों को खलने लगी। विभागीय राजनीति और अंदरूनी ईर्ष्या का सामना उन्हें तब करना पड़ा जब 2006 में एक मराठी अखबार में उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की खबर छपी।
उन्हें आरोपों का सामना करना पड़ा, ACB की जांच हुई, दो महीने जेल में भी रहना पड़ा। पर चार्जशीट दाखिल न होने और पर्याप्त सबूतों के अभाव में वे बरी हो गए। आरोप था कि उन्होंने अपने गांव में एक हाईटेक स्कूल बनवाने में करोड़ों खर्च किए, जिसका उद्घाटन अमिताभ बच्चन जैसी हस्तियों ने किया। सवाल उठा कि एक इंस्पेक्टर के पास इतनी दौलत कहां से आई, लेकिन अदालत में यह बात साबित नहीं हो सकी।
सालों की कड़ी मेहनत, अदम्य साहस और निस्वार्थ सेवा के बाद जब वह रिटायर होने वाले थे, उससे दो दिन पहले ही उन्हें प्रमोशन देकर सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) बनाया गया। इस सम्मान को उन्होंने गर्व और विनम्रता से स्वीकार करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि जीवन भर की सेवा, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है।
दया नायक अब भले ही पुलिस बल से रिटायर हो रहे हों, लेकिन उनकी कहानी मुंबई पुलिस के इतिहास में हमेशा एक साहसिक अध्याय की तरह दर्ज रहेगी।