• Mon. Aug 18th, 2025

नोएडा: कैप्टन लक्ष्मी सहगल के स्मृति दिवस एवं चंद्रशेखर आजाद और बाल गंगाधर तिलक की जयंती पर माकपा कार्यकर्ताओं उन्हे

कैप्टन लक्ष्मी सहगल के स्मृति दिवस एवं चंद्रशेखर आजाद और बाल गंगाधर तिलक की जयंती पर माकपा कार्यकर्ताओं उन्हें याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया

नोएडा, आजाद हिंद फौज की कैप्टन लक्ष्मी सहगल की स्मृति दिवस पर पार्टी कार्यालय सेक्टर- 8, नोएडा कार्यालय पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीपीआई (एम) जिला प्रभारी गंगेश्वर दत्त शर्मा ने देश की आजादी में अहम भूमिका अदा करने वाले नेताजी #सुभाषचंद्रबोस की सहयोगी रहीं #कैप्टनलक्ष्मीसहगल स्वतंत्रता संग्राम की सच्ची वीरांगनाओं में से एक हैं। कैप्टन डॉ. लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर, 1914 को केरल में वकील एस. स्वामीनाथन और सामाजिक कार्यकर्ता एवं स्वतंत्रता सेनानी ए. वी. अम्मुकुट्टी के घर हुआ।
लक्ष्मी बहुत कम उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी। उन्होंने दलितों के मंदिर प्रवेश के लिए और बाल विवाह व दहेज प्रथा के विरोध में अभियान चलाए। उन्होंने 1938 में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और 1940 में सिंगापुर चली गई, जहां वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आई। नेता जी के साथ चली 5 घंटे की बैठक के बाद उन्हें आजाद हिंद फौज की महिला शाखा ‘रानी झांसी रेजीमेंट’ स्थापित करने का कार्य सौंपा गया।
लक्ष्मी स्वामीनाथन अब कैप्टन लक्ष्मी बन गई। यह वह नाम और पहचान थी जो आजीवन उनके साथ रही। वे आजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री भी रहीं। मार्च 1947 में उन्होंने आजाद हिंद फौज के अग्रणी साथी कर्नल प्रेमकुमार सहगल से विवाह किया। दंपत्ति लाहौर से कानपुर आ गया, जहां उन्होंने अपनी मेडिकल सेवाएं देनी शुरू कर दी और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए काम करने लगी। पश्चिमी बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु के डॉक्टरों को किए गए आह्वान के कारण उन्होंने बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए शरणार्थी कैंप में काम किया।
उसके तुरंत बाद वे भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़ गई। 1981 में जनवादी महिला समिति के संस्थापक सदस्यों में से एक थी। कैप्टन लक्ष्मी सहगल आजीवन जनवादी महिला समिति के बैनर तले महिलाओं व वंचित तबकों के हितों के लिए और समाज सुधार के मुद्दों पर काम करती रही। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी हिंसा में उन्होंने भीड़ का विरोध किया और यह सुनिश्चित किया कि कानपुर में उनके इलाके में किसी भी सिख परिवार या सिख प्रतिष्ठान को हानि ना हो।
1998 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। 2002 में वे डॉक्टर ए.पी.जे.अब्दुल कलाम के खिलाफ वाम मोर्चे की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनीं। वे अपनी मृत्यु तक कानपुर में गरीब लोगों के लिए मुफ्त क्लीनिक चलाती रहीं। 98 वर्ष की उम्र में 23 जुलाई 2012 को उनका निधन हो गया। ताउम्र देश की बेहतरी के लिए संघर्ष करने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने मृत्यु के बाद भी अपना शरीर मेडिकल विद्यार्थियों के शोध के लिए दान कर दिया।
ऐसी महान शख्सियत कैप्टन लक्ष्मी सहगल को उनके स्मृति दिवस के अवसर पर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) क्रांतिकारी सलाम करती है।

साथ ही उन्होंने महान क्रांतिकारी देशभक्त स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जी की जयंती पर सभी को शुभकामनाएं देते हुए उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए देश की आजादी में उनके योगदान को रेखांकित किया।
माकपा जिला सचिव कामरेड रामसागर ने कहां की कैप्टन लक्ष्मी सहगल, चंद्रशेखर आजाद बाल गंगाधर तिलक के योगदान को देश कभी नहीं भूला पायेगा।

कार्यक्रम में माकपा के वरिष्ठ नेता केरल के पूर्व मुख्यमंत्री कामरेड वी.एस. अच्युतानंदन के निधन पर शोक वक्त करते हुए 2 मिनट का मौन रखकर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

By Ankshree

Ankit Srivastav (Editor in Chief )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *