विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर बाजार की धारणा वैश्विक वृहद आर्थिक घटनाक्रमों, घरेलू नीतिगत उपायों और मुद्रा के उतार-चढ़ाव से तय होगी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की भारतीय शेयर बाजारों से निकासी का सिलसिला जारी है। अमेरिका द्वारा कनाडा, मेक्सिको और चीन जैसे देशों पर शुल्क लगाए जाने से वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ा है, जिसके चलते विदेशी निवेशकों ने फरवरी के पहले सप्ताह में भारतीय शेयर बाजारों से 7,342 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं। जनवरी में भी एफपीआई ने 78,027 करोड़ रुपये की निकासी की थी, जिससे बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 में एफपीआई ने भारतीय बाजारों में 15,446 करोड़ रुपये का निवेश किया था, लेकिन उसके बाद से वे लगातार निकासी कर रहे हैं। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आगे की स्थिति वैश्विक आर्थिक घटनाक्रमों, घरेलू नीतियों और मुद्रा विनिमय दरों पर निर्भर करेगी मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि एफपीआई की निकासी का प्रमुख कारण अमेरिका और अन्य देशों के बीच व्यापारिक तनाव है। अमेरिका द्वारा शुल्क लगाए जाने के कारण व्यापार युद्ध की संभावना बढ़ गई है, जिससे वैश्विक निवेशकों ने जोखिम उठाने से बचने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि इस अनिश्चितता की वजह से उभरते बाजारों, जैसे भारत, से निवेशकों की निकासी बढ़ी है इसके अलावा, भारतीय रुपये की गिरावट भी एफपीआई के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। पहली बार रुपया 87 प्रति डॉलर से नीचे चला गया, जिससे विदेशी निवेशकों का प्रतिफल घट गया और भारतीय संपत्तियां उनके लिए कम आकर्षक हो गईं। जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी. के. विजयकुमार ने कहा कि डॉलर इंडेक्स में मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड पर उच्च प्रतिफल एफपीआई को बिकवाली के लिए मजबूर कर रहा है। हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि एफपीआई की बिकवाली जल्द ही कम हो सकती है, क्योंकि डॉलर इंडेक्स और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में नरमी देखने को मिल रही है इसके अलावा, दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत से बाजार को लघु अवधि में सकारात्मक संकेत मिल सकते हैं। हालांकि, दीर्घकालिक दृष्टि से बाजार की दिशा आर्थिक विकास और कंपनियों की आमदनी में सुधार पर निर्भर करेगी। हालांकि, समीक्षाधीन अवधि में एफपीआई ने भारतीय बॉन्ड बाजार में शुद्ध निवेश किया है। उन्होंने साधारण सीमा के तहत 1,215 करोड़ रुपये और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग से 277 करोड़ रुपये का निवेश किया है। यह दर्शाता है कि वे अभी भी कुछ क्षेत्रों में रुचि बनाए हुए हैं। उल्लेखनीय है कि 2024 में एफपीआई ने भारतीय शेयरों में मात्र 427 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, जबकि 2023 में उन्होंने 1.71 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था। इसकी तुलना में, 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक वृद्धि के चलते एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी की थी संक्षेप में, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और अमेरिकी व्यापार नीतियों के कारण भारतीय बाजारों से एफपीआई की निकासी जारी है। हालांकि, बाजार विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले महीनों में इसमें सुधार हो सकता है, जिससे भारतीय बाजार को स्थिरता मिल सके
फरवरी के पहले सप्ताह में निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 7,342 करोड़ रुपये निकाले
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विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर बाजार की धारणा वैश्विक वृहद आर्थिक घटनाक्रमों, घरेलू नीतिगत उपायों और मुद्रा के उतार-चढ़ाव से तय होगी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की भारतीय शेयर बाजारों से निकासी का सिलसिला जारी है। अमेरिका द्वारा कनाडा, मेक्सिको और चीन जैसे देशों पर शुल्क लगाए जाने से वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ा है, जिसके चलते विदेशी निवेशकों ने फरवरी के पहले सप्ताह में भारतीय शेयर बाजारों से 7,342 करोड़ रुपये निकाल लिए हैं। जनवरी में भी एफपीआई ने 78,027 करोड़ रुपये की निकासी की थी, जिससे बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 में एफपीआई ने भारतीय बाजारों में 15,446 करोड़ रुपये का निवेश किया था, लेकिन उसके बाद से वे लगातार निकासी कर रहे हैं। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि आगे की स्थिति वैश्विक आर्थिक घटनाक्रमों, घरेलू नीतियों और मुद्रा विनिमय दरों पर निर्भर करेगी मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि एफपीआई की निकासी का प्रमुख कारण अमेरिका और अन्य देशों के बीच व्यापारिक तनाव है। अमेरिका द्वारा शुल्क लगाए जाने के कारण व्यापार युद्ध की संभावना बढ़ गई है, जिससे वैश्विक निवेशकों ने जोखिम उठाने से बचने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि इस अनिश्चितता की वजह से उभरते बाजारों, जैसे भारत, से निवेशकों की निकासी बढ़ी है इसके अलावा, भारतीय रुपये की गिरावट भी एफपीआई के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। पहली बार रुपया 87 प्रति डॉलर से नीचे चला गया, जिससे विदेशी निवेशकों का प्रतिफल घट गया और भारतीय संपत्तियां उनके लिए कम आकर्षक हो गईं। जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी. के. विजयकुमार ने कहा कि डॉलर इंडेक्स में मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड पर उच्च प्रतिफल एफपीआई को बिकवाली के लिए मजबूर कर रहा है। हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि एफपीआई की बिकवाली जल्द ही कम हो सकती है, क्योंकि डॉलर इंडेक्स और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में नरमी देखने को मिल रही है इसके अलावा, दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत से बाजार को लघु अवधि में सकारात्मक संकेत मिल सकते हैं। हालांकि, दीर्घकालिक दृष्टि से बाजार की दिशा आर्थिक विकास और कंपनियों की आमदनी में सुधार पर निर्भर करेगी। हालांकि, समीक्षाधीन अवधि में एफपीआई ने भारतीय बॉन्ड बाजार में शुद्ध निवेश किया है। उन्होंने साधारण सीमा के तहत 1,215 करोड़ रुपये और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग से 277 करोड़ रुपये का निवेश किया है। यह दर्शाता है कि वे अभी भी कुछ क्षेत्रों में रुचि बनाए हुए हैं। उल्लेखनीय है कि 2024 में एफपीआई ने भारतीय शेयरों में मात्र 427 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था, जबकि 2023 में उन्होंने 1.71 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था। इसकी तुलना में, 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक वृद्धि के चलते एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी की थी संक्षेप में, वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और अमेरिकी व्यापार नीतियों के कारण भारतीय बाजारों से एफपीआई की निकासी जारी है। हालांकि, बाजार विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि आने वाले महीनों में इसमें सुधार हो सकता है, जिससे भारतीय बाजार को स्थिरता मिल सके