सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बाल विवाह के मुद्दे पर गहरी चिंता जताई है। अदालत ने कहा कि बाल विवाह से बच्चों का अपने जीवन साथी चुनने का अधिकार खत्म हो जाता है। कोर्ट ने इस प्रथा को रोकने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं, ताकि बाल विवाह निरोधक कानून को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।
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अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में नाबालिगों की शादी की अनुमति है, जो बाल अधिकारों का उल्लंघन करती है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नाबालिगों का विवाह कराने से उनके जीवनसाथी चुनने के अधिकार का हनन होता है, और यह बाल विवाह के माध्यम से मानवाधिकारों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से कहा कि इस प्रथा को रोकने के लिए कठोर कदम उठाए जाएं और नाबालिगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि जो लोग इस कुप्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
बाल विवाह निरोधक कानून में बदलाव की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि बाल विवाह निरोधक कानून (PCMA) में कई कमियां हैं। कोर्ट ने याद दिलाया कि 1929 में चाइल्ड मैरिज रेस्ट्रेन एक्ट के बाद 2006 में प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट (PCMA) बनाया गया, लेकिन इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए अभी भी कई सुधारों की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा कि नीतियों को विभिन्न समुदायों की जरूरतों के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए और कानून लागू करने वाले अधिकारियों को इस दिशा में प्रशिक्षित और सक्षम बनाया जाना चाहिए। इसके अलावा, कोर्ट ने सरकार से यह स्पष्ट करने का आग्रह किया कि यह कानून पर्सनल लॉ पर लागू होगा या नहीं।
सामाजिक दृष्टिकोण से लड़ाई की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई सिर्फ कानून तक सीमित नहीं होनी चाहिए। यह एक सामाजिक बुराई है, जिसका प्रभाव हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों, विशेषकर लड़कियों पर अधिक पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए एक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिसमें लिंग, जाति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और भौगोलिक कारकों को ध्यान में रखा जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि PCMA तब तक सफल नहीं होगा जब तक कि सभी हितधारक एकजुट होकर इस समस्या का समाधान नहीं करेंगे। इसके लिए बहु-क्षेत्रीय समन्वय की आवश्यकता है, ताकि बच्चों के अधिकारों का संरक्षण किया जा सके और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुप्रथा को जड़ से खत्म किया जा सके।