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नारायणी नदी की रेत में हरियाली ला रही किसानों की मेहनत,नदी में समाई सैकडों एकड़ भूमि को कर रहे जीवंत

Report By :Ravindra Mishra Maharajganj (UP)

नारायणी नदी में समाई जंगल की सैकड़ों एकड़ भूमि पर किसानो का अवैध कब्ज़ा जीवंत कर उसमें हरियाली ला रहें हैं। रेत से पटी भूमि पर गेहूं फसल उगा किसान कर रहे खेती जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बना है। सूत्रों का कहना है। की महाकामे की मिली भगत से हुआ है कब्जा निचलौल ब्लाक क्षेत्र के गेड़हवा के अर्जुनही गांव,भेड़िहारी,वनकसिया, बढ़या, गांव के पास के गंगाल की भूमि बीते दस वर्षों में कटान कर नदी में समा गई है । नदी में समाई जंगल भूमि के विकल्प ने मध्य नदी में जमा रेत के टीले को किसान कृषि योग्य बनाने में जुटे हैं।

नीचे मोटी रेत के ढेर के सिवाए किसानों और जंगल के भूमि का पता ही नहीं चल पाता है। गांव के किसान बढया से टेलफाल घाट तक बहती धारा को नाव से पार कर बीच नदी के रेत में उर्वरक व मेहनत के बल पर बड़ी कठिनाइयों का सामना कर अपने या जंगल के भूमि सांकेतिक स्थलों को मान कर खेती कर रहें हैं। जिससे रवि के फसल गेहूं की खेती लहलहा रहीं है।

पिछले दस वर्षों में नदी 19 एकड़ कृषि भूमि काट कर बीच धारा में लेली है। ऊपर जमे मोटी रेत से भूमि पता नहीं चल पाती अंदाज से दो एकड़ में खेती कर रहा हैं। वन विभाग भी अपनी भूमि बता कर रोकने का प्रयास करता रहता है। पैसा मांगता है। समस्या समाधान के लिए शिकायत एसडीएम से किया गया है।

हरिलाल मुसहर भेड़िहारी ने बताया कि मुझे पट्टे की भूमि मिली थी। नदी वनकसिया के भूमि काट कर बीच धारा में कर दी है। ठंड के मौसम में पानी कम हो जाता है। जिससे एक वर्ष में एक फसल काट लेते है। किसानो का कहना है फसल काटते समय रेंजर परेशान करते है। नदी में किसानों की सौ एकड़ से भी ज्यादा भूमि बाढ़ में कटी है। नदी में समाए भूमि स्वामी से दर्जनों किसान अधिया पर लेकर भी खेती किए है।

निचलौल रेंज के रेंजर सुनील राव ने कहा कि जंगल व कृषि भूमि के हुए कटान से भूमि नदी में विलीन हो गई है। किसानों से वन विभाग द्वारा कोई रकम नहीं मांगी गई है। नदी रेत पर उनका फसल उगाने का काम सराहनीय है।

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