Report By : ICN Network
दो दशकों बाद वर्ली के ऐतिहासिक मराठी मेलावा में एक दृश्य ऐसा भी देखने को मिला, जिसकी महाराष्ट्र की राजनीति लंबे समय से प्रतीक्षा कर रही थी — मंच पर एक साथ उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे। इस पुनर्मिलन ने मराठी अस्मिता, भाषा, संस्कृति और स्वाभिमान को लेकर एक सशक्त संदेश दिया।
उद्धव ठाकरे ने मंच से साफ कहा, “हम साथ रहने के लिए साथ आए हैं। अब न कोई हमें इस्तेमाल करेगा और न ही फेंकेगा। इस बार हम फेंकने वाले हैं।”
उद्धव ठाकरे ने हिंदी की अनिवार्यता को खारिज करते हुए कहा कि महाराष्ट्र में मराठी के लिए आवाज उठाना कोई गुंडागर्दी नहीं है, बल्कि यह हक की लड़ाई है। उन्होंने कहा, “अगर मराठी भाषा और स्वाभिमान के लिए खड़े होना गुंडागर्दी है, तो हमें गर्व है कि हम गुंडे हैं।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि, “हिंदुत्व किसी एक भाषा का बंधक नहीं है। मराठी भाषी उससे कहीं अधिक कट्टर देशभक्त हिंदू हैं। क्या हमें कोई हिंदुत्व सिखाएगा?”
उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि “हमें हिंदू और हिंदुस्तान मंजूर हैं, लेकिन हिंदी थोपना स्वीकार नहीं। आप कितनी भी समितियां बना लें, लेकिन मराठी के अस्तित्व से हम समझौता नहीं करेंगे।”
उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 14 वर्षों में केंद्र सरकार ने मुंबई और महाराष्ट्र से कई अहम उद्योग और कार्यालय छीन लिए — हीरा व्यापार, वित्तीय संस्थान और कॉर्पोरेट हब दिल्ली या गुजरात शिफ्ट हो चुके हैं।
मुख्यमंत्री मोदी की योजनाओं पर सवाल उठाते हुए उद्धव ठाकरे बोले, “एक ओर आपके पोस्टर हैं और दूसरी तरफ मेरा महाराष्ट्र का किसान है, जो कर्ज में डूबा हुआ है, जिसे न बैल मिल रहे हैं, न सम्मान।”
उद्धव ठाकरे ने एक कटाक्ष करते हुए कहा कि, “कल किसी ने ‘जय गुजरात’ कहा… कितना बेबस होगा वो? क्या बालासाहेब ठाकरे के विचारों में आस्था रखने वाला ऐसा कुछ कह सकता है?”
अंत में उद्धव ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन सिर्फ भाषा का नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और अधिकारों की लड़ाई है। और इस बार लड़ाई साथ मिलकर लड़ी जाएगी — मराठी स्वाभिमान के लिए, महाराष्ट्र की मिट्टी के लिए।