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UP-पीलीभीत में रिहायशी इलाकों में बाघों की चहल कदमी से दहशत में ग्रामीण,बाघ के खौफ के मारे किसानों ने जंगल जाना छोड़ा

यूपी के पीलीभीत में देश दुनिया मे बाघो की बढ़ती संख्या एवं विलुप्त प्राय वन्य जीवों के लिए पहचान रखने वाला पीलीभीत टाइगर रिजर्व इन दिनों जंगल से सटे करीब दर्जनों गांव के ग्रामीणों के लिए एक मुसीबत सा बन गया है। आलम यह है कि अब जंगल से बाघ निकल कर ग्रामीण इलाकों में रियाहशी क्षेत्र का रूख कर विचरण कर रहे है। जिसके खौफ की वजह से ग्रामीणों ने खेत पर जाना बंद कर दिया है तो वहीं दूसरी ओर गांव के बच्चे स्कूल भी नहीं जा पा रहे है आइए आपको दिखाते खौफ का पर्याय बने पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे गांव पिपरिया सन्तोष की कुछ खौफनाक लाइव तस्वीरें दुखाई दी है।

कुदरत ने इंसानो के लिए गांव बसाए तो वन्य जीवों के लिए शानदार जंगल जिसको सरकार ने 2014 में टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया है, जब तक ये अपनी हदो में रहे तब तक सब ठीक है, लेकिन इन दिनों बाघ जंगल से अपनी हदें पार कर खुलेआम खेतो के विचरण कर ग्रामीणों के बीच खौफ का पर्याय बना हुआ है,, तस्वीरे जनपद के पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे जंगल किनारे गांव पिपरिया संतोष की है, जहां एक तरफ गन्ने के खेतों में खौफ़ का पर्याय बना बाघ खुलेआम खेतो में विचरण कर रहा है, और वन विभाग की टीम तमाम प्रयासों के साथ बाघ की मॉनिटरिंग करने में जुटी है,, और बाघ उनके सामने बाघ एक खेत से दूसरे खेत चहल कदमी करता कैमरे में कैद किया जा रहा है लेकिन बाघ को वन विभाग की टीम ट्रंकु लाइज करने में नाकाम साबित हो रही है। आलम यह है कि ग्रामीण दिन में खेतों में काम नहीं कर पा रहे है और शाम होने से पहले ही घरों में कैद हो जाते है। पता नहीं कब खेत मे कोई काम कर रहा हो और कब घात लगाए बैठा बाघ हमला वर होकर किसको मौत के घाट उतार दे। आपको बता दें पिछले करीब चार माह में आस पास के चार ग्रामीणो की मौत हो चुकी है। जिसके बाद से जंगल से सटे गांव में बाघ की चहल कदमी का खौफ है। आपको बता दें पिछले करीब दो माह से बाघो को खुलेआम खेतो में घूमते देखा जा रहा है। लेकिन बाघ है कि वन विभाग के काबू से बाहर है, अब इसे बाघो की बढ़ती संख्या का असर कहे या फिर बाघो के घर जंगल के भीतर इंसानो की दखल अंदाजी का नतीजा पिछले करीब दो माह से बाघो ने रियाहशी इलाक़ो में एंट्री मारने की ऐसी शुरुआत की है कि इलाके में मवेशियों से लेकर इंसानो पर हमला कर रहे है। जिसकी वजह से लोग खौफ में जीने को मजबूर है। लेकिन वन विभाग के अफसर सिर्फ मॉनीटरिंग का दावा ही पेश कर रहे है।
बीते 28 जून को रानीगंज निवासी लालता प्रसाद व 16 अगस्त को उसी गांव के राममूर्ति, सहित 21 सितंबर को रघुनाथ 26 सितंबर को जमुनिया के तोताराम को बाघ हमले में अपनी जान गवानी पड़ी। यह तो महज चंद नाम है जो पिछले करीब चार माह में बाघों के हमले से मौत के घाट उतारे जाते हैं आखिरकार जंगल से बाघ बाहर क्यों आ रहे हैं इसको लेकर वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट की माने तो बाघों के लिए जंगल छोटा पड़ रहा है और इंसानी लोगों की बाघों के घर में दखलअंदाजी भी इसका कारण है आईए जानते हैं क्या कहा वन्य जीव एक्सपर्ट ने बाईट वन्य जीव प्रेमी डॉक्टर केशव अग्रवाल ने बताया कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व 72000 स्क्वायर किलोमीटर में फैला टाइगर रिजर्व है इसको 5 रेंज बरही महोफ माला हरिपुर और दियूरिया रेंज में बांटा गया है गणना के अनुसार इस समय 75 से अधिक बाकी संख्या है जिसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी वन विभाग की टीम में तैनात बन दरोगाओ व रेंजर इंस्पेक्टर सहित वनवाचार की है इसमें बाघ मित्रों की टीम भी शामिल है लेकिन जंगल से सटे इलाकों में वन्यजीवों के साथ रहकर उनके संरक्षण का पाठ पढ़ने वाले अधिकारी सिर्फ दावो वादों में ही नजर आते हैं। तमाम प्रयासों के वावजूद बाघ जंगल के बाहर खुलेआम खेतों में पहुंच जाता है जिससे मानव एवं वन्य जीव की संघर्ष की घटनाएं सामने हो जाती है वजह है जंगल के क्षेत्र में ग्रास लैंड मैनेजमेंट नहीं है कोर जोन में प्रवेश प्रबंधित होने के बावजूद पर्यटकों व मानव का हस्तक्षेप जंगल में होने की वजह से बाघ जंगल को छोड़कर बाहर मैदानी की ओर रुक कर रहे हैं यदि आंकड़ों की बात करें तो एक बाघ को लगभग 90 स्क्वायर किलोमीटर की रेंज चाहिए होती है इसके हिसाब से टाइगर श्रॉफ में कुल 30 से 35 भागों का विचारण हो सकता है लेकिन वन विभाग के अफसर की नाकामी की वजह से वन्य जीव जंगल से सेट खेतों में तारंभुजी आ जाते हैं जिनके पीछे शिकार करते हुए भाग भी खेतों में चला आता है और सुगरकेन इलाके में रहकर जंगल जैसा माहौल देखकर वहां रुक जाता है और खेतों में काम कर रहे लोगों पर हमलावर होकर उन्हें अपना निशाना भी बना देता है।

By admin

Journalist & Entertainer Ankit Srivastav ( Ankshree)

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