यूपी के जालौन में एक ऐसा प्राचीन ऐतिहासिक 450 साल पुराना कुआं जो गवाह हैं एक ऋषि के चमत्कार का, राजमहल में कुएं की खुदाई के लिए स्वामी तुलसीदास ने किया था भूमि का चयन और यही वजह है सैकड़ो साल से कुँए वाले स्थान में कभी पानी की कमी नही होती और यही वजह है कि विशालकाय प्राचीन कुँए को देखने के लिए देश ही नही बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते रहते है।
जालौन के माधौगढ़ तहसील में जगम्मनपुर के किले में स्थापित कुआं 450 साल पुराने इतिहास की कहानी को दोहराता हैं। जिसे सुनकर आप भी हैरत में पड़ सकते हैं क्योंकि इसकी कहानी चौकाने वाली हैं। कुएं की उत्पत्ति किसी आममानस के द्वारा नहीं बल्कि एक ऋषि के कमंडल के पानी से जलधारा प्रकट हुई और 450 साल बाद भी वर्तमान में यह कुआं यहां के रहने वाले लोगों की प्यास बुझाने का काम कर रहा है। हालांकि इससे जुड़े इतिहास को सिर्फ चंद शब्दों में बयां नहीं कर सकतें। इससे जुड़ा राजा महाराजाओं का अध्याय सुनकर आप अचंभित हो सकते हैं। वहां के लोगों की ऐसी धारणा हैं कि इस कुएं के जल से स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति हो जाती हैं। इस कुएं का एक पन्ना राजवंशियों के शासनकाल को भी दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि उस समय जगम्मनपुर के तत्कालीन महाराजा जगम्मनदेव के राजमहल का निर्माण हो रहा था तभी राजा के अनुरोध पर गोस्वामी तुलसीदास पधारे औऱ उन्होंने राजा को एक मुखी रुद्राक्ष व शालिग्राम की मूर्ति भेंट की इसके बाद जब गांव का नवनिर्माण हो रहा था को राजा को जलापूर्ति की चिंता हूई तो उन्होंने तुलसीदास जी से कुंआ खोदने के लिए स्थान चयन करने की बात कही तो जब किला के उत्तरी भाग ने कुआं खोदा गया तो वहां पानी न निकला तो राजा की चिंता और भी बढ़ गई। राजा की चिंता को देख तुलसीदास जी ने वहां पास के आश्रम से सिद्ध संत श्री मुकुंदवन को किले में पधारने का अनुरोध किया तो ऋषि मुकुंदवन ने कमंडल से जैसे ही जल डाला तो उससे जलधारा फुट पड़ी और वहां तेजी से जलप्रबाह होने लगा औऱ उस दौरान ऋषि ने वहां मौजूद सभी लोगों को सम्बोधित करते हुए बताया कि यह कुंआ पवित्र नदियों के जल स्रोतों के संपर्क में है और इस जल से स्नान करने से लोगों को पुण्य मिलेगा। हालांकि वर्तमान में जगम्मनपुर में 100 से 200 फुट पर पानी हैं लेकिन इस कुएं की जलधारा मात्र 50 फ़ीट से निकलती हैं और वर्तमान में आज भी लोग इस कुएं के पानी का उपयोग खेती की सिचाई करने के लिए करते हैं।
वहीं स्थानीय निवासी विजय द्विवेदी बताते हैं यह कुंआ 16वीं सदी का हैं और लगभग 450 साल पुराना है। ऐसा हम अपने बुजुर्गों से सुनते चले आ रहें हैं कि प्राचीन काल मे जब यहां के राजा जगम्मनदेव के द्वारा कुएं का निर्माण किया जा रहा था तो यहां पास में पचनद नाम का स्थान है। जहां एक सिद्ध संत रहा करते थे तो उनसे मिलने के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी यहां आएं जब किले के निर्माण के लिए पानी की आवश्यकता पड़ी तो राजा साहब तुलसीदास जी को लेने पचनद पहुंचे तो राजा के साथ तुलसीदास औऱ ऋषी मुकुंदवन दोनों लोग महल में आएं। तो राजा साहब ने उनसे आग्रह किया कि यहां पानी की बहुत समस्या है और यहां जो कुंआ खुदवाया गया है उसमें भी पानी नहीं आ रहा है। तभी ऋषि मुकुंदवन ने अपने कमंडल से जल छोड़ा तो कुएं से जलधारा निकलने लगीं पानी का वेग इतना तेज था कि उसे मिट्टी व चुने से रोकना पड़ा। जगम्मनपुर में कुएं लगभग 100 फुट पर मिलता हैं लेकिन यही ऐसा कुंआ हैं जिसमें 50 से 55 फीट पर पानी मिलता हैं। इसमें अगर नलकूप से पानी निकाले तो इसका पानी अनवरत हैं कभी नहीं रुकता है और ऐसी मान्यता हैं कि पांच नदियों की जलधारा इस कुएं में प्रवाहित होने से इसका पानी पवित्र माना जाता हैं कि इसके पानी से स्नान करने से मोक्ष मिलता है व पुण्य की प्राप्ति होती हैं।
वही गांव के निवासी बताते हैं कि इस कुएं का निर्माण 16 वीं सदी में हुआ था। इस कुएं का पानी कभी नहीं सूखा और सिचाई में भी इसके पानी का उपयोग होता है। महल के निर्माण के समय राजा साहब के आग्रह ओर मुकुंदवन ऋषि यहां आएं और उन्होंने अपने कमंडल से इस कुएं में पानी छोड़ा तो उसमें पानी का तेजी से प्रवाह शुरू हो गया तब से इस कुएं का पानी आज तक नहीं सूखा इसमें असीमित पानी हैं। प्राचीन काल से लेकर आज भी इस कुएं का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। तब से इस कुएं का नाम सागर हो गया है।