Report By : Shariq Khan Mahoba (UP)
पान एक ऐसी चीज जिसका भारत के इतिहास एवं परंपराओं से गहरे जुड़ाव है। यूं तो इसका उद्भव स्थल मालद्वीप को माना जाता है ,लेकिन इसकी अच्छी किस्म उत्तर प्रदेश के एक महोबा ज़िले में पाई जाती है। यहां से यह पान देश-विदेश में भेजा जाता है। महोबा का देशावरी पान खाड़ी देशों के साथ ही पाकिस्तान में भी इसकी काफी मांग हैं । अब देशावरी पान को जीआई टैग मिलने के बाद भी पान किसानों को कुछ खास लाभ nhi मिल पा रहा है।
महोबा का देशावरी पान का इतिहास चंदेलकाल कालीन बताया जाता है । चंदेल राजाओं ने बड़े पैमाने पर भूमि देकर पान की खेती करानी शुरू की थी। लेकिन पान किसानों को लेकर करीब आठ सौ वर्ष बाद भी सरकारों द्वारा कोई विशेष सुध न लिए जानें से पान की खेती लगातार अंधकार में चली गई। कभी 800 हेक्टेयर में होने वाली पान की खेती आज महज ढाई सौ हेक्टेयर भूमि पर सिमट कर रह गई है प्राकृतिक आपदाओं एवं आपसी वैमानुष्टा के चलते पान किसान तमाम परेशानियो से जूझ रहा है । पान किसानों की माने तो अब इस पीढ़ी के बाद नए युवा पान की खेती से जुड़कर काम नहीं करना चाहते वह अन्य फसलों के माध्यम से अपनी भूमि पर ज्यादा पैदावार कर धन पैदा करना चाहते हैं क्योंकि पान की खेती में कहां बस सिला हुआ और तमाम दासपुर जैसी साधनों से इसका बरेजा तैयार किया जाता है जिसमें लाखों रुपए का खर्च आता है ओलावृष्टि कोर तेज बारिश आधी आधी और आपसी में मनुष्यता के चलते यह पैन बजे आज का भी शिकार बन जाते हैं जिससे चांदी मिनट में उनकी फसल बर्बाद हो जाती है पान बरेली में किसानों को हर तोड़ मेहनत करना पड़ती है उन्हें रोज खाद पानी और निराई की जाती है जिस वजह से यह फसल बहुत कीमती मानी जाती है यदि हाली के दिनों में देखा जाए तो पान की फसल लगातार एक महीने तक पड़े कोहरे के चलते पाल पढ़ने से पूरी तरह खराब हो गई है इसके बावजूद अपने पुरखों से मिली इस विरासत को कुछ किसान आज भी जीवित रखना चाहते हैं।
महोबा का देशावरी पान पूर्व में दुबई, सऊदी अरब, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित दुनिया के कई देशों में निर्यात किया जाता रहा है, लेकिन समय के साथ पान की खेती में बढ़ते संकट के कारण अब यह देश के पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली, मुंबई और बंगाल तक जाता है।
पान के सैंकड़ों लाभ भी हैं यही वजह है कि शास्त्रों में भी पान का जिक्र आता है । पान कड़वा, तीखा, मधुर, कसैला व क्षारीय, पाँचों रसों से युक्त होता है। पान के सेवन से वायु कुपित नहीं होती है, कफ मिटता है, कीटाणु मर जाते हैं। मुख की शोभा बढ़ाता है, दुर्गन्ध मिटाता है तथा मुँह का मैल दूर करता है और कामाग्नि प्रदीप्त करता है।पान को संस्कृत में ताम्बूल कहते हैं। यह हमारे खान-पान, अतिथि सत्कार के रूप में प्राचीन काल से भारतीय संस्कार का अभिन्न अंग बनकर चला आ रहा है। इतना ही नहीं, पान पूजा का भी आवश्यक व अनिवार्य सामग्री के रूप में वैदिक काल से चला आ रहा है।
पान की कृषि अपने देश में लम्बे समय से चली आ रही है। सांस्कृतिक व धार्मिक रीति रिवाजों में पान रचा बसा है। इसमें विटामिन ए, बी और सी के अतिरिक्त औषधी के लिए भी उपयोग में लाया जाता है।