उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदेMaharashtra Politics: महाराष्ट्र की उथल-पुथल भरी राजनीति में बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों की दहलीज पर खड़े होने से ठाकरे-शिंदे ध्रुवीकरण ने एक नया मोड़ ले लिया है। शिवसेना (शिंदे गुट) के दिग्गज विधायक कृपाल तुमाने ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है, जो महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के खेमे में हड़कंप मचा रहा है। उनका दावा है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) के मात्र दो विधायकों को छोड़कर शेष सभी एकनाथ शिंदे गुट के संपर्क में हैं और दशहरा मेला के अवसर पर एक भव्य पार्टी प्रवेश समारोह में वे अपनी निष्ठा बदलने को तैयार हैं। यह बयान न केवल बीएमसी चुनावों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि महाराष्ट्र की सत्ता संरचना को भी हिला देने की क्षमता रखता है।
मीडिया से रूबरू होते हुए कृपाल तुमाने ने तीखे लहजे में कहा कि यूबीटी के कार्यकर्ता संजय राउत के ‘उग्र रवैये’ से त्रस्त हो चुके हैं, जिसकी वजह से अधिकांश विधायक शिंदे गुट की ओर झुक रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, “सिर्फ दो विधायकों को छोड़कर बाकी सभी हमारे संपर्क में हैं, और मुंबई के करीब 80 प्रतिशत पूर्व नगरसेवक भी शिंदे गुट से जुड़ने को आतुर हैं।” यह दावा बीएमसी चुनावों से ठीक पहले आया है, जब शिंदे गुट अपनी जड़ें मजबूत करने की रणनीति पर अमल कर रहा है। तुमाने के अनुसार, यह ‘मास मूवमेंट’ दशहरा रैली के दौरान धरातल पर उतरेगा, जो शिवसेना के आंतरिक संघर्ष को नई ऊंचाई देगा।
2022 का वह काला अध्याय: शिंदे की बगावत ने हिला दी थी महाराष्ट्र की सियासत
यह दावा याद दिलाता है 2022 के उस ऐतिहासिक भूचाल को, जब एकनाथ शिंदे ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था। उस समय शिंदे के साथ 39 अन्य विधायकों ने उद्धव का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिला लिया, जिससे शिवसेना में गहरी दरार पड़ गई। इस बगावत ने महाविकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन – जिसमें शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी-शरद गुट) और कांग्रेस शामिल थे – को सत्ता की चौखट से बाहर धकेल दिया। शिंदे गुट और उद्धव गुट के बीच की यह तनातनी आज भी सुलग रही है, और बीएमसी चुनावों से पहले शिंदे का यह नया दावा एक बार फिर सियासी तापमान को चढ़ाने का काम कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह दावा साकार हुआ, तो यूबीटी का विधायी आधार चरमरा सकता है, जबकि शिंदे गुट मुंबई में अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा।
बदलाव की हवा: शिंदे गुट की रणनीति में नया अध्याय
इस घटनाक्रम ने महाराष्ट्र की राजनीति को नया रंग दे दिया है। शिंदे गुट अब विधायकों को लुभाने के साथ-साथ पूर्व नगरसेवकों को अपने पाले में करने पर जोर दे रहा है, जो बीएमसी जैसे अमीर नगर निकाय में निर्णायक साबित हो सकता है। एक ओर जहां शिंदे गुट भाजपा के साथ मजबूत गठबंधन का दम भर रहा है, वहीं उद्धव गुट के विधायकों में असंतोष की खबरें सतह पर आ रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संजय राउत का आक्रामक रुख ही इस ‘टूटने’ की मुख्य वजह है, जो पार्टी के भीतर विद्रोह की जड़ें पैदा कर रहा है। यदि दशहरा पर यह ‘ग्रैंड होमकमिंग’ हुआ, तो यह महाराष्ट्र की सियासत में एक नया युग रचेगा।
ठाकरे ब्रदर्स का एकीकरण: 20 साल बाद एक मंच, लेकिन पहली परीक्षा में फिसड्डी!
इधर, यह दावा ऐसे समय में आया है जब बीएमसी चुनावों से पहले ‘ठाकरे ब्रदर्स’ – उद्धव और राज ठाकरे – ने करीब 20 साल बाद एकजुट होने का संकेत दिया है। मराठी अस्मिता के नाम पर दोनों भाई एक मंच पर आ चुके हैं, जिससे महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरणों में उथल-पुथल मच गई है। जुलाई 2025 में वर्ली डोम में आयोजित रैली में दोनों ने हिंदी थोपने के खिलाफ संयुक्त विरोध जताया, और गणेशोत्सव के दौरान भी उनकी नजदीकी बढ़ी। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि दोनों मिलकर बीएमसी चुनाव लड़ सकते हैं, जो मराठी वोट बैंक को एकजुट करने का सुनहरा मौका साबित हो सकता है।
हालांकि, ‘ठाकरे ब्रदर्स’ की यह जोड़ी पहली ही कसौटी पर ठिठक गई। बेस्ट एम्प्लॉयी को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी के चुनावों में – जो बीएमसी का लिटमस टेस्ट माना जा रहा था – दोनों भाइयों की पार्टियों ने ‘उत्कर्ष’ पैनल के तहत मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन 21 में से एक भी सीट नहीं जीत सकीं। शशांक राव के पैनल ने 14 सीटें हथिया लीं, जबकि महायुति को 7 मिलीं। यह हार न केवल उद्धव की शिवसेना के 9 साल पुराने प्रभुत्व को समाप्त करती है, बल्कि ठाकरे ब्रांड की मजबूती पर भी सवाल खड़े कर रही है। भाजपा ने इसे ‘ठाकरे ब्रांड का शून्य साबित होना’ बताते हुए अपनी मजबूत स्थिति का दावा किया है।
कुल मिलाकर, शिंदे गुट का यह दावा और ठाकरे ब्रदर्स की हार महाराष्ट्र की सियासत को एक रोमांचक मोड़ दे रही है। बीएमसी चुनाव न केवल नगर निकाय की सत्ता पर कब्जे का सवाल है, बल्कि यह ठाकरे परिवार की विरासत और शिंदे की महत्वाकांक्षा के बीच की जंग का आईना भी बनेगा। क्या दशहरा पर बड़ा उलटफेर होगा, या ठाकरे ब्रदर्स अपनी एकजुटता से वापसी करेंगे? आने वाले दिन ही बताएंगे।