Report By-Darshan Sahu Sultanpur (UP)
यूपी के सुल्तानपुर में वर्षों की कठोर साधना के पश्चात जिस बोध गया (बिहार) में सिद्धार्थ को बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए, उसी बोध गया के निवासी दीपक आनंद इन दिनों अयोध्या से कौशाम्बी की पद यात्रा पर हैं। तीन वर्ष पूर्व ह्वेनसांग को फालो करते हुए उनके पदचिन्हों से शुरू दीपक आनंद की यह पद यात्रा बीच में कोरोना की शिकार हो गई। अब वे फिर से पदयात्रा पर हैं। गौरतलब है कि मौर्य शासक अशोक केेे काल में लगभग 84,000 स्तूपों का निर्माण किया गया था। जगह-जगह बने इन बौद्ध स्तूपों के संरक्षण हेतु सरकारों व आमजन की उदासीनता से आहत दीपक उन्हीं स्तूपों के संरक्षण को पद यात्रा पर निकले हैं। सुलतानपुर पहुँचे दीपक आनंद ने मुलाकात दौरान बताया कि ह्वेनसांग सातवीं शताब्दी में यहाँ पर आए थे।
जहां-जहां भगवान बुद्ध की चारिका है वहां-वहां वे गए हैं। उन सारी जगहों पर उन्होने यात्रा की थी। 2020 में ह्वेनसांग को फालो करते हुए उनके फुट स्टेप पर हमने कोरोना काल के पहले फुट जर्नी स्टार्ट की थी। लेकिन लॉकडाउन से यात्रा बाधित हो गई थी। अब बाकी जो बचा था उसे अब पूरा कर रहा हूं। दीपक कहते हैं कि ह्वेनसांग जब यहां पर आए तो अयोध्या भी गए अयोध्या से वह अयोमुखा भी गए। अयोमुखा से प्रयागराज एवं कौशाम्बी गए। तो अभी तक अयोमुखा का यह पता नही चल पाया था कि आयोमुखा कहां है। इस बार मैं कोपिया गया था। मुझे ऐसा विश्वास है कि कोपिया ही अयोमुखा है। दीपक कहते हैं कि वहां पर ह्वेनसांग ने राजा अशोक के द्वारा बनाया एक स्तूप देखा था। वहां एक गांव है बिहारे। मुझे लगता है कि बिहारे में जो प्राचीन भग्नावशेष हैं सूंग एवं कुसांग कालीन हैं। और वह स्तूप है जिसकी चर्चा ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा में की है। तो कोपिया ही मेरे हिसाब से आयोमुखा होना चाहिए। गौरतलब है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व कोपिया (अनुपिया) में राजा शुद्धोधन का राजमहल था। यहीं से ज्ञान की तलाश में गौतम बुद्ध आमी नदी के किनारे वस्त्र त्याग कर निकल पड़े थे। बातचीत दौरान दीपक ने बताया कि हमारी पद यात्रा अभी कौशाम्बी तक है। यह यूपी की अंतिम पदयात्रा है, बाकी जहां पर भी ह्वेनसांग गए हैं वह कंप्लीट कर लिया है। इससे पहले ह्वेनसांग का ट्रेल था हरियाणा में जहां पर भी भगवान बुद्ध गए हैं ह्वेनसांग के मुताबिक। तो सुकना नामक हरियाणा में एक जगह है। वहां से हमने अपनी पद यात्रा शुरू की थी। वहां से गोविंदसा, नहीनक्षत्र, कतरंजी खेडा, संकिसा होते हुए कन्नौज, नेवल, नवदेपुला, अयोध्या एक रूट है ह्वेनसांग का। यह सब रूट हमने पूरा कर लिया है। दो सौ किमी का यह जो बचा हुआ था अब उसे पूरा कर रहा हूँ। उन्होंने कहा कि अयोध्या में ह्वेनसांग ने अशोक के बनाए दो स्तूप देखे थे। कनिंगम का कहना था कि मणि पर्वत जो है वह ह्वेनसांग का बताया स्तूप हो सकता है। मैं भी वहां पर गया तो मुझे भी लगता है कि उनका कहना सही था। वहां एक और राजा सहजुवान का टीला है उसके बारे में जो अशोक ने स्तूप बताए थे वहां भगवान बुद्ध ने प्रवचन दिए यह टीला वही स्तूप होना चाहिए। अभी तो वहां अतिक्रमण कर लिया गया है, लेकिन अभी भी वह बहुत बड़ा टीला है।
अस्तित्व बचाए रखने व लोगों को जागरुक करना ही यात्रा का मकसद : दीपक आनंद
लगभग 2500 किमी ह्वेनसांग का ट्रेल बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, नेपाल में मैं पूरा कर चुका हूं। अब यूपी में अयोध्या से कौशाम्बी की यह अंतिम पद यात्रा है। प्रतिदिन 15 से 20 किमी की पद यात्रा करने वाले दीपक ने यात्रा का मकसद बताया कि बुद्ध भगवान की जो चारिका रही है उसका एक्सपीरियंस करना है। उसके अस्तित्व बचाए रखने के लिए लोगों को जागरुक करना है। यह विश्व धरोहर है। पूरे विश्व में बुद्धिस्ट की संख्या बड़ी है। उन लोगों के लिए भी यह सब महत्वपूर्ण जगह है। लेकिन ये बचेंगे ही नहीं तो हम उन्हें क्या दिखायेंगे। इनके संरक्षण की आवश्यकता है।