Report By : ICN Network
आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के बच्चों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षण का लाभ न दिए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक याचिका दाखिल की गई। याचिका में दलील दी गई कि उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ देना उचित नहीं है, क्योंकि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की श्रेणी में नहीं आते
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने स्पष्ट किया कि यह तय करना न्यायपालिका का काम नहीं है कि किसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए और किसे इसके दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह पूरी तरह से संसद का विशेषाधिकार है कि वह इस मुद्दे पर नीतिगत निर्णय ले
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की कि आरक्षण से संबंधित मुद्दे बेहद संवेदनशील और जटिल होते हैं। इन्हें हल करने का दायित्व संविधान और संसद के अधीन है। न्यायपालिका का काम संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत मामलों का निपटारा करना है, न कि नीतिगत निर्णय लेना
इस मामले को लेकर समाज में लंबे समय से बहस जारी है। कई लोग यह तर्क देते हैं कि आरक्षण का लाभ केवल उन लोगों को मिलना चाहिए, जो वास्तव में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। वहीं, दूसरी ओर, संविधान के तहत आरक्षण व्यवस्था सामाजिक समानता और ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के उद्देश्य से लागू की गई है
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि आरक्षण से जुड़े मुद्दों पर कोई भी परिवर्तन या संशोधन केवल संसद द्वारा किया जा सकता है। न्यायपालिका इस विषय पर हस्तक्षेप करने के बजाय संवैधानिक दायरे में ही अपनी भूमिका निभाएगी