न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में पीड़िता और उसके माता-पिता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन कोर्ट ने माना कि यह स्पष्ट नहीं किया गया कि शारीरिक संबंध से उनका क्या मतलब था और यह शब्द अपने आप में दुष्कर्म साबित करने के लिए काफी नहीं है। मामला साल 2023 में दर्ज हुआ था। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि 2014 में उसका चचेरा भाई (जो अब आरोपी था) ने शादी का झूठा वादा कर करीब एक साल तक उसके साथ यौन संबंध बनाए। आरोपी को आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 (गंभीर यौन अपराध) के तहत 10 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष का पूरा मामला केवल मौखिक गवाही पर आधारित था, जैसे पीड़िता और उसके माता-पिता की बातों पर। केस में कोई मेडिकल या फोरेंसिक सबूत नहीं था। न्यायाधीश ने कहा कि शारीरिक संबंध जैसे शब्द का इस्तेमाल, बिना यह बताए कि इसका क्या मतलब है। बिना किसी वैज्ञानिक या कानूनी पुष्टि के आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पॉक्सो या आईपीसी में शारीरिक संबंध शब्द की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। इसलिए, जब तक आरोपों को मजबूत करने के लिए जरूरी साक्ष्य न हों, केवल ऐसे शब्दों के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी बाल पीड़िता की गवाही में जरूरी बातें स्पष्ट नहीं होतीं, तो यह अदालत की जिम्मेदारी बनती है कि वह खुद स्पष्टीकरण मांगे और सुनिश्चित करे कि बयान पूरी तरह दर्ज हो। अंततः अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप को संदेह से परे साबित नहीं कर पाया, इसलिए आरोपी को दोषमुक्त किया गया।