Report By : ICN Network
एनसीईआरटी द्वारा हाल ही में जारी की गई नई किताबों के शीर्षकों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। खासकर तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इन शीर्षकों को लेकर यह आरोप लगाया जा रहा है कि केंद्र सरकार हिंदी और संस्कृत को थोपने की कोशिश कर रही है।
एनसीईआरटी ने कक्षा 1 से 12वीं तक की कई किताबों के नामों में बदलाव किए हैं। उदाहरण के तौर पर, कक्षा 1 और 2 की अंग्रेजी की किताब का नाम ‘मृदंग’, कक्षा 3 की का नाम ‘संतूर’, और कक्षा 6 की किताब का नाम ‘पूर्वी’ रखा गया है। वहीं, विज्ञान और गणित जैसी विषयों की किताबों के नाम भी भारतीय सांस्कृतिक विरासत से जुड़े शब्दों पर आधारित रखे गए हैं।
तमिलनाडु में पहले से ही भाषा को लेकर संवेदनशीलता रही है। राज्य की सरकार हिंदी विरोधी रुख के लिए जानी जाती है। वहां त्रिभाषा नीति को भी खारिज किया गया था। अब जब किताबों के नाम हिंदी और भारतीय शास्त्रीय परंपराओं से लिए जा रहे हैं, तो इसे राज्य में हिंदी थोपने की एक और कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
दूसरी ओर, एनसीईआरटी ने यह स्पष्ट किया है कि इन शीर्षकों को भारतीय शास्त्रीय संगीत, कला और संस्कृति से प्रेरित होकर रखा गया है और इसका उद्देश्य छात्रों को भारत की सांस्कृतिक विविधता से जोड़ना है। यह नाम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के दिशा-निर्देशों के तहत तय किए गए हैं, जिसका मकसद भारतीय ज्ञान प्रणाली और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देना है।
हालांकि इस पूरे बदलाव को लेकर राजनीति भी गरमा गई है। कई शिक्षाविदों और क्षेत्रीय दलों ने इस फैसले पर सवाल उठाए हैं और इसे केंद्र की “एक भाषा, एक संस्कृति” नीति की ओर इशारा बताया है। उनका कहना है कि यह विविध भाषाओं और संस्कृतियों वाले भारत की आत्मा के खिलाफ है।
विवाद के बीच यह मुद्दा अब शिक्षा की बजाय राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन गया है, और देश की भाषाई विविधता को बनाए रखने को लेकर बहस तेज हो गई है।