सुशीला कार्की को भारत का करीबी समर्थक माना जाता है, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को चीन का समर्थक कहा जाता था। शपथ ग्रहण से पहले सुशीला ने पीएम नरेंद्र मोदी की कार्यशैली की जमकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि वह उनकी नेतृत्व शैली और दृढ़ निश्चय से बेहद प्रभावित हैं। उनकी यह टिप्पणी दोनों देशों के बीच सहयोग और विश्वास को और मजबूत करने का संकेत देती है। GenZ के जोश ने लिखा नया अध्याय
केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद नेपाल में लंबे समय तक चली राजनीतिक अनिश्चितता का अंत हुआ, जब 73 वर्षीय सुशीला कार्की को नेतृत्व की कमान सौंपी गई। GenZ प्रदर्शनकारियों ने उनके नाम का प्रस्ताव सेना प्रमुख को सौंपा था, जिसे अंततः स्वीकार कर लिया गया। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने शुरू में संवैधानिक बाधाओं का हवाला देते हुए इस पर विचार करने की बात कही थी, क्योंकि नेपाल का संविधान पूर्व जजों को राजनीतिक पद संभालने की अनुमति नहीं देता। लेकिन युवा आंदोलनकारियों के दबाव और जनता की मांग के आगे उन्हें झुकना पड़ा, और सुशीला कार्की ने 12 सितंबर को शपथ ली। सुशीला कार्की ने सुनीं GenZ की पुकार, लागू कीं ये प्रमुख मांगें
सुशीला कार्की ने GenZ प्रदर्शनकारियों की मांगों को गंभीरता से लेते हुए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जो नेपाल के भविष्य को नई दिशा देंगे:
- लोकतंत्र की ओर कदम: 6 से 12 महीनों के भीतर नए सिरे से चुनाव कराने का वादा।
- संसद भंग, नई कमान: नेपाल की संसद को भंग कर सुशीला कार्की के हाथों में देश की बागडोर।
- सर्वसमावेशी सरकार: नागरिकों और सेना के प्रतिनिधियों को शामिल कर एक समावेशी सरकार का गठन।
- पारदर्शिता की मांग: पुराने दलों और नेताओं की संपत्ति की जांच के लिए एक सशक्त न्यायिक आयोग का गठन।
- न्याय का वचन: आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच, ताकि प्रभावितों को इंसाफ मिले।