यूपी में ओबीसी आबादी करीब 40-45% है, जिसमें गैर-यादव ओबीसी (कुर्मी, जाट, लोधी, निषाद आदि) का बड़ा हिस्सा बीजेपी का पारंपरिक आधार रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने इस वोट बैंक में सेंधमारी की थी, जिसके बाद ओबीसी नेतृत्व को आगे लाने की बात तेज हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि कुर्मी (7-8%) या जाट (2-3%) जैसे समुदायों का चेहरा गैर-यादव ओबीसी को फिर से पार्टी की ओर खींच सकता है। उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के चेहरे के रूप में जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह और सांसद बाबू राम निषाद के नाम चर्चा में हैं। इनमें स्वतंत्र देव सिंह सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं, क्योंकि 2014 और 2017 में उनके नेतृत्व में भाजपा ने यूपी में बड़ी जीत दर्ज की थी। इसके अलावा, 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर इतिहास रचा। अब 2027 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए, भाजपा फिर से उनके नाम पर विचार कर सकती है, जो पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा हो सकता है।
यूपी में स्वतंत्र देव सिंह को मिलेगी कमान? सियासी और जातीय समीकरण क्या कहते हैं?

यूपी में ओबीसी आबादी करीब 40-45% है, जिसमें गैर-यादव ओबीसी (कुर्मी, जाट, लोधी, निषाद आदि) का बड़ा हिस्सा बीजेपी का पारंपरिक आधार रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने इस वोट बैंक में सेंधमारी की थी, जिसके बाद ओबीसी नेतृत्व को आगे लाने की बात तेज हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि कुर्मी (7-8%) या जाट (2-3%) जैसे समुदायों का चेहरा गैर-यादव ओबीसी को फिर से पार्टी की ओर खींच सकता है। उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग के चेहरे के रूप में जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, प्रदेश महामंत्री अमरपाल मौर्य, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह और सांसद बाबू राम निषाद के नाम चर्चा में हैं। इनमें स्वतंत्र देव सिंह सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं, क्योंकि 2014 और 2017 में उनके नेतृत्व में भाजपा ने यूपी में बड़ी जीत दर्ज की थी। इसके अलावा, 2022 के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर इतिहास रचा। अब 2027 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए, भाजपा फिर से उनके नाम पर विचार कर सकती है, जो पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा हो सकता है।