यूपी का गाजीपुर का मोहम्मदाबाद तहसील जो करईल का इलाका कहा जाता है। और यहां के किसान अब परंपरागत खेती धान, गेहूं की खेती करने के बजाय अब वह आधुनिक खेती और नगदी खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। इसी के तहत मोहम्मदाबाद इलाके में पेठा बनाने के काम में आने वाला भतुआ की खेती भी बड़े ही जोर-शोर पर किया जा रहा है। कारण की इसकी खेती में कम लागत ,जानवरों से सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं के साथ ही यह नगदी खेती में शुमार हो गया है।₹10000 प्रति एकड़ के खर्चे में इसकी खेती किसान कर रहे हैं और मौजूदा समय में₹600 प्रति क्विंटल की रेट से मिठाई बेचने वाले दुकानदार खरीदारी कर रहे हैं।
किसान अब परंपरागत खेती छोड़कर अब अधिक आमदनी करने वाली खेती करना शुरू कर दिया है। किसान मिर्च टमाटर और केले की खेती तो कर रहे हैं लेकिन उनमें अत्यधिक लागत फसलों की सुरक्षा और मजदूरों की समस्या को लेकर काफी परेशान है। अब वह इन समस्याओं से निजात पाते हुए कुछ ऐसी खेती करना चाहते हैं। जिसमें उक्त समस्याओं से तो कुछ निजात मिले ही और उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो। ऐसी ही खेती में बहुत कम लागत में अधिक लाभ देने वाली भतुआ की खेती भी कुछ किसानों ने अभी शुरू किया। हालांकि वह इस खेती से काफी संतुष्ट हैं, भतुए की खेती में काफी कम लागत लगाकर किसान अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं । भतुआ की बड़े पैमाने पर खेती करने वाले किसान शेरपुर खुर्द निवासी ज्ञानेंद्र कुमार राय( पहलवान) ने बताया कि वह मिर्च और टमाटर तथा मटर की खेती करते थे लेकिन इस खेती में काफी खर्च और मजदूरों की समस्या को देखते हुए उन्होंने इन फसलों की खेती काफी कम कर दी है। और काफी कम खर्च में अधिक आमदनी देने वाली भतुआ की खेती विगत 7-8 वर्षों से कर रहे हैं। बताया कि केवल शेरपुर में सौ से डेढ़ सौ एकड़ भतुआ की खेती की गई है ।इस खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह पूरी तरह से जैविक खेती है। बुवाई के 140 से150 दिन में इसका फल पककर तैयार हो जाता है । इस खेत में मटर की खेती करने वाले किसान भतुए के कच्चे फल को भी बेच देते हैं और फिर उसे खाली खेत में मटर की बुवाई भी कर देते हैं। इससे उनका दोहरा लाभ ही प्राप्त हो जाता है ।भतुए की खेती में खर्च नाम मात्र का पड़ता है। भतुए की खेती में कुल लगभग दस हजार रुपए प्रति एकड़ पड़ता है।इसमें 300 से 350 ग्राम बीज प्रति एकड़ लगता है । जून जुलाई में बरसात शुरू होने पर इसकी बुवाई होती है तथा 25 से 30 दिन बाद निकाई -गुड़ाई के साथ वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग किया जाता है। अगर मौसम ने साथ दिया तो भतुआ की पैदावार 15 से 20 मेट्रिक टन प्रति एकड़ तक हो सकती है। बाजार भाव के हिसाब से इसकी खरीद बिक्री होती है इस समय भतुआ ₹600 प्रति क्विंटल बिक रहा है। किसानों को इसकी बिक्री करने में भी कोई परेशानी नहीं होती और लोकल मार्केट में ही गाजीपुर, मुहम्मदाबाद तथा मऊ में पेठा बनाने वाली फैक्ट्री के स्वामी के अलावा विभिन्न प्रकार की मिठाइयां बनाने वाले व्यवसायी भी इसे खरीद लेते हैं। गौरतलब है कि क्षेत्र के बांड़(गंगा के आसपास) और करइल कि किसानों ने मिर्च टमाटर मटर तथा केले की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं जिसमें बहुत अधिक लागत और मजदूरों की कमी के साथ-साथ जंगली जानवरों से फसल की सुरक्षा की बहुत बड़ी समस्या होती है।