2020 के उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगों से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में शरजील इमाम के कई वीडियो पेश किए। पुलिस का दावा है कि इन वीडियो में शरजील इमाम नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ ऐसे भाषण देते दिख रहे हैं, जिन्होंने माहौल को भड़काया और भीड़ को उकसाने का काम किया। वहीं, शरजील इमाम इन आरोपों को खारिज करते हुए लगातार यह दावा करते रहे हैं कि उन्होंने केवल शांतिपूर्ण विरोध की बात की थी।
सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने अदालत में कहा कि जब पढ़ा-लिखा और बौद्धिक वर्ग कथित रूप से ऐसी गतिविधियों में शामिल होता है, तो उसका प्रभाव जमीन पर हिंसा करने वालों से कहीं अधिक खतरनाक हो सकता है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने अदालत को बताया कि ट्रायल में देरी का कारण आरोपी ही हैं, और अब उसी देरी का हवाला देकर जमानत चाहते हैं।
पुलिस ने यह भी कहा कि एक चिंताजनक रुझान सामने आ रहा है—डॉक्टर, इंजीनियर जैसे पेशेवर भी ‘राष्ट्रविरोधी गतिविधियों’ में शामिल हो रहे हैं, जो कानून-व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है।
इससे पहले 30 अक्टूबर को भी दिल्ली पुलिस ने आरोपियों की जमानत याचिकाएँ खारिज करने का अनुरोध किया था। पुलिस के हलफनामे में कहा गया कि दंगों को दिल्ली तक सीमित नहीं रहने देने की कोशिश हुई, बल्कि इसे पूरे देश में फैलाने की योजना थी, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि प्रभावित की जा सके।
पुलिस का दावा है कि डिजिटल साक्ष्यों और चैट संदेशों से यह संकेत मिलता है कि CAA विरोध प्रदर्शनों को उस समय तेज किया गया जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर थे, ताकि वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित किया जा सके। पुलिस के अनुसार, इसका उद्देश्य देश में व्यवस्था परिवर्तन और आर्थिक-सामाजिक अस्थिरता पैदा करना था।
दिल्ली पुलिस यह भी कहती है कि 2020 के दंगे स्वतःस्फूर्त नहीं थे, बल्कि एक “गहरी, सुनियोजित और समन्वित साजिश” का हिस्सा थे, जिसमें समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश की गई। आरोपियों—उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और रहमान—पर UAPA समेत IPC की कई गंभीर धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हैं।
फरवरी 2020 में हुए इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की जमानत याचिकाओं पर कल फिर से सुनवाई करेगा।