Report By-Anjani Kumar Mishra Amethi (UP)
यूपी के अमेठी में विकास खंड संग्रामपुर में कुटीर उद्योग के रूप में पहचान रखने वाला सुतली रेशा उद्योग सरकार की उदासीनता के चलते बंदी के कगार पर पहुंच गया है। गुणवत्तायुक्त बीज तथा पानी की व्यवस्था न होने के चलते किसान सुतली की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं। वहीं किसानों की सुविधा के लिए गोरखापुर और अम्मरपुर में बनाए गए सुतली केन्द्र अतिक्रमण की चपेट में हैं। एक दशक पूर्व सुतली रेशा उद्योग की जिले की एक पहचान थी। संग्रामपुर क्षेत्र के कई गांवों में यह वर्मा समुदाय का प्रमुख उद्योग धंधा था। क्षेत्र के बड़ी संख्या में किसान सुतली (सनई ) की खेती करते थे। इसकी खेती करने से खेतों में हरी खाद के साथ ही जलाने के लिए ईंधन और रस्सी बनाने के लिए रेशा मिल जाता था। यह एक बहुउपयोगी फसल मानी जाती थी। सनई से रेशा निकालकर ग्रामीण बाध बनाते थे। बाद में इसका उपयोग गृहस्थी के सामानों में होता था।बीज और पानी की अनुपलब्धता से सुतली की खेती से मुंह मोड़ रहे किसान, सरकार भी नहीं दे रही ध्यान संग्रामपुर विकासखंड के गोरखापुर, तारापुर, अम्मरपुर, कसारा, बड़गांव, भावलपुर, धौरहरा, जरौटा, उत्तरगांव, बनवीरपुर, छाछा सहित कई गांवों में सनई से सुतली रेशा निकालने का काम किया जाता था। इससे बाध बनाकर किसान घरेलू जरूरत पूरी करते थे और बाध की बिक्री कर घर परिवार का खर्च चलाते थे। लेकिन इन गांव में स्थित तालाब में पानी की व्यवस्था न होने से किसानों ने इसकी खेती करना बंद कर दिया है।
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तारापुर के राम किशोर वर्मा, अम्मरपुर के ओमप्रकाश वर्मा व रामसेवक वर्मा तथा गोरखपुर के हरिकेश वर्मा आदि ने बताया कि प्लास्टिक की रस्सियां आने से अब इसकी बिक्री कम हो गई है। साथ ही खेती में अधिक लागत आने से इसकी लागत भी बढ़ गई है। अधिक श्रम के बाद उचित मूल्य न मिलने से किसान अपना यह पैतृक धंधा छोड़ दिया। हालांकि तारापुर, अम्मरपुर, गोरखापुर सहित कई गांवों में अभी भी सनई की खेती की जाती है। महिलाओं को मिला था प्रशिक्षण
संग्रामपुर और अमेठी विकासखंड में एक निजी संस्था ने सुतली से बाध बनाने के लिए 500 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया था। जिसमें महिलाएं मशीन द्वारा रेशा से बाध बनाने का काम करती थी। लेकिन बाजार सुलभ न होने के चलते इन महिलाओं ने भी काम करना छोड़ दिया। वहीं बाध बनाने वाली मशीन कबाड़ में बेंच दी गई।