Report By : Ankit Srivastav, ICN Network
कतर की राजधानी दोहा में को अफगानिस्तान को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) की एक बैठक हुई। इसमें भारत समेत 25 देश शामिल हुए। साथ ही ऐसा पहली बार हुआ जब तालिबान के नेता अफगानिस्तान पर चर्चा के दौरान मौजूद रहे हों। इससे पहले वे UN की हर उस बैठक का बहिष्कार करते रहे हैं जिनमें अफगानिस्तान पर चर्चा की गई हो।
UN ने स्पष्ट कर दिया था कि इस बैठक का मकसद तालिबान को मान्यता देना नहीं है। इसके बावजूद कई मानवाधिकार संगठनों ने मीटिंग की आलोचना की और सवाल उठाए। इन संगठनों की मांग है कि जब तक तालिबान महिलाओं के अधिकारों का हनन करता रहेगा तब तक न तो उससे बात की जाए और न उन्हें मान्यता मिले।
अफगानिस्तान पर हुई UN की मीटिंग में भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के अधिकारी जेपी सिंह शामिल हुए। हालांकि, इस वक्त विदेश मंत्री एस जयशंकर भी दोहा में थे पर वे बैठक में नहीं गए। भारत अभी तालिबान के मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। UN की मीटिंग से पहले मार्च में काबुल गए थे। वहां उन्होंने तालिबान के अधिकारियों से मुलाकात की थी। अफगानिस्तान को मान्यता देने के लिए भारत अभी तैयार नहीं है। हालांकि वहां मानवीय मदद पहुंचा कर अपना असर बनाए रख रहा है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक अफागनिस्तान में सुरक्षा के हालातों की वजह से भारत तालिबान को इग्नोर नहीं कर सकता है।
तालिबान बोला- हमें अपनी बात रखने का मौका मिला तालिबान के प्रतिनिधि जबिउल्लहा मुजाहिद ने बैठक के बाद कहा कि उन्हें सभी देशों के सामने अपनी बात रखने का मौका मिला। तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अफगानिस्तान के बैंकिंग सेक्टर और उनके अधिकारियों पर पाबंदियां लगी हैं।इससे अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर हो गई है। ऐसे में तालिबान की मांग है कि उस पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाए।