Report By-Atish Trivedi Lakhimpur Kheri (UP)
यूपी के लखीमपुर खीरी में इन दिनों सर्दियों की कहे जाने वाली मेवा सिंघाड़े (water chestnut) की फसल की बिक्री बड़ी तेज़ी से बढ़ी है जिसकी वजह से किसान सिंघाड़े की फसल तालाब में उगाकर खूब मुनाफा कमा रहे है जून में पौधे की रोपाई की जाती है और सिंघाड़े की पहली तुड़ाई सिंतबर के महीने में कर सकते हैं. सिंघाड़े की खेती से किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
सिंघाड़ा जून से दिसंबर के मध्य की फसल है. इसकी खेती के लिए लगभग एक से दो फीट तक पानी की आवश्यकता होती है
सिंघाड़ा जून से दिसंबर के मध्य की फसल है. इसकी खेती के लिए लगभग एक से दो फीट तक पानी की आवश्यकता होती है. निचले तालाबों में पानी का भराव करके सिंघाड़े की फसल आसानी से उगाई जा सकती है. जून में पौधे की रोपाई की जाती है और सिंघाड़े की पहली तुड़ाई सिंतबर के महीने में कर सकते हैं.
सिंघाड़े की बुवाई का सही समय
मॉनसून की बारिश के साथ ही सिघाड़े की बुवाई शुरू होती है. बरसात का मौसम शुरू होते ही जून-जुलाई में सिंघाड़ा बोया जाता है. आमतौर पर छोटे तालाबों, पोखरों में सिंघाड़े का बीच बोया जाता है लेकिन मिट्टी के खेतों में गड्ढे बनाकर उसमें पानी भरके भी पौधों की रोपाई की जाती है. जून से दिसंबर यानी 6 महीने की सिंघाड़े की फसल से बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
वैसे तो भारत में कई तरह के सिंघाड़े उगाए और खाए जाते हैं. इनमें हरे रंग का सिंघाड़ा, लाल रंग का सिंघाड़ा और बैंगनी रंग का सिंघाड़ा काफी फेमस है. भारत में सिंघाड़े को कानपुरी, जौनपुरी, देसी लार्ट और देसी स्माल आदि नामों से जानते है. इसकी खेती बिहार से लेकर झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के भी कई इलाकों में की जाती है.
चाहे फसल खेत में हो या तालाब में बेहतर पैदावार के लिए खाद और उर्वरक की उपलब्धता फसल को सुनिश्चित करना जरूरी होता है. इसी तरह सिंघाड़े की फसल में भी पोल्ट्री की खाद के साथ-साथ जैव या रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल चाहिये. यह फल 6 से 7.5 के पीएच मान पर निकलते है. किसान चाहें तो फास्फोरस और पोटेशियम का प्रयोग भी कर सकते हैं. सिंघाड़े के प्रमुख उत्पादक राज्य सिंघाड़े की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर में 30 से 40 किलोग्राम यूरिया का इस्तेमाल करते हैं. यूरिया का बुरकाव रोपाई के 30 दिन बाद और 45 दिन बाद किया जाता है.