Report By- Asghar Naqi Sultanpur (UP)
2 जनवरी सदानंद सिंह के लिए अंधेरा लेकर आई। उसने पिता की अर्थी को कांधा दिया। लेकिन ठीक दसवें दिन ये अंधेरा उजाले में तब्दील हुआ जब उसने UPPCS की परीक्षा का इंटरव्यू देकर डिप्टी जेलर का पद हासिल किया 2009 में पास किया हाईस्कूल लंभुआ तहसील के बधुपुर गांव में के सदानंद से इंटरव्यू में सवाल हुआ, ‘राम भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं? जवाब मिला भगवान राम का जीवन दर्शन ही दर्पण की तरह है।’ इस जवाब पर उसे डिप्टी जेलर का पद मिल गया।
सदानंद ने साल 2009 में हाईस्कूल व 2011 में इंटरमीडिएट की परीक्षा स्वामी विवेकानंद विद्या आश्रय प्रयागराज से पास किया। मैट्रिक में उसे 77 प्रतिशत तो इंटर में 78 प्रतिशत अंक मिले। पांच वर्ष बाद 2016 में KNIPSS सुल्तानपुर से उसने इंजीनियरिंग की परीक्षा पास किया। आठ घंटे रोज करता सेल्फ स्टडी फिर उसने परिवार की ही फर्म पर काम शुरू कर दिया। सपना था आफीसर बनने का तो उसने प्रयागराज में ही कमरे पर तैयारी शुरू कर दिया। बगैर किसी कोचिंग के वो नोट्स बनाता। मार्केट से किताबें लाता। मोबाइल पर इंटरनेट सर्च करता। रोज आठ घंटे वो मेहनत करता।
पीसीएस परीक्षा के पहले प्रयास में वो मेन्स तक पहुंच सका। लेकिन अब दूसरे प्रयास में मेन्स से आगे बढ़ा 11 जनवरी को इंटरव्यू की डेट आ गई।आंखों से छलके खुशी व ग़म के आंसू इसी बीच भाग्य ने ऐसी पलटी खाई कि उसकी आंखों के सामने अंधेरा आ गया। इंटरव्यू से ठीक दस दिन पहले 2 जनवरी को पिता ने सदा के लिए आंख बंद कर लिया। सदानंद को लगा सपने टूट जाएंगे। लेकिन संयुक्त परिवार में बड़े पिता से लेकर चाचा और फिर मां और बहने सबने हौसला बढ़ाया। आखिर उसने इंटरव्यू दिया। मंगलवार को जब रिजल्ट आया तो उसकी आंखों से खुशी और गम दोनों के आंसू एक साथ बहे। उपलब्धि पर जहां वो खुश था वही पिता को ये उपलब्धि ना दिखा पाने का मलाल।ईमानदारी सफलता की है सबसे बड़ी पूंजी सदानंद दो भाई और दो बहन हैं। छोटे भाई ने ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है तो दो सगी बहनों में बड़ी प्राइमरी टीचर और छोटी बहन सोशल वर्कर की तैयारी कर रही। मां रेखा सिंह गृहणी हैं। सदानंद के बड़े पिता वीरेंद्र प्रताप सिंह इंटर कॉलेज के रिटायर्ड टीचर हैं। पिता स्व. महेंद्र सिंह बिजनेसमैंन थे। ऐसे में अब वो रहे नहीं तो परिवार की जिम्मेदारी उसके कांधों पर आ गई है। सदानंद कहते हैं कि सभी के लिए बस एक संदेश है, ईमानदारी मेहनत का रास्ता पकड़े यही सफलता की सबसे बड़ी पूंजी है।