Report By-Anil Kumar Ghazipur(UP)
यूपी के गाज़ीपुर में एक ऐसा नो जवान कुँवर वीरेंद्र सिंह जो पिछले कई सालों से लावारिश लाशों का मुफ्त में अंतिम संस्कर कर रहा है वीरेंद्र को अफसोस बस इस बात का है कि कभी सरकार ने इनकी कोई मदद नही की जिनका कोई जानने वाला ना हो और ना कोई पहचानने वाला हो ऐसे लोगों को मरने के बाद चिता की आग भी नसीब नहीं होती है शायद इसीलिए लोग अपने जीते जी अपना वारिस जरूर देखना चाहते हैं लेकिन जनपद गाजीपुर में ऐसे लावारिस लोगों को चिंता करने की अब कोई जरूरत नहीं क्योंकि उनके मरने के बाद उनकी चिता को सम्मान के साथ ना सिर्फ आग देने वाला बल्कि पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार पिंडदान और श्राद्ध करने वाला भी जनपद में एक यू एक्वायर वीरेंद्र सिंह है ।
वीरेंद्र पिछले 11 सालों में करीब 1400 से ऊपर लावारिस लाशों का हिंदू और मुस्लिम रीति रिवाज से दाह संस्कार या फिर उन्हें सुपर देख कर चुका है।वीरेंद्र सिंह जिनकी माता को कैंसर था और यह अपनी मां से काफी मोहब्बत करते थे। लेकिन कैंसर के चलते उनकी मौत हुई और यह पूरी तरह से टूट गए। उसके बाद से ही यह अपनी पूरी जिंदगी और असहायों की मदद करने के लिए लगा दिया ।आज उनके कार्य की वजह से सिर्फ गाजीपुर के लोग ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी इनको जानते हैं । शायद यही कारण है कि इन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।वीरेंद्र सिंह ने बताया कि जब इन्होंने यह काम शुरू किया तब इन्हें लगा कि महीने में एक या दो लाश लावारिस लाश मिलेगी । जिसका उनके द्वारा और उनके सहयोगियों के द्वारा दाह संस्कार किया जाएगा। शुरू में तो ठीक चलता रहा लेकिन धीरे-धीरे अब लगभग प्रत्येक दिन लावारिस लाश का दाह संस्कार करते हैं। यहां तक की कभी-कभी उनके घर में शादी विवाह या फिर उनके पड़ोस में मांगलिक कार्यक्रम होता है। लेकिन उन सब की परवाह किए बगैर पहले यह लावारिसों का दाह संस्कार हिंदू है तो हिंदू रीति रिवाज से और यदि मुस्लिम है तो मुस्लिम रीति रिवाज से कब्रिस्तान में मुस्लिम बंधुओ के साथ मिलकर उसको सुपुर्दे खाक कराता है फिर मांगलिक कार्यक्रमो में शामिल होते है।उन्होंने बताया कि उनके इस काम से बहुत सारे लोगों ने दूरियां बना ली। लेकिन कहीं उससे ज्यादा लोग उनके करीब हो गए। आज स्थिति यह है कि कभी-कभी एक और कभी-कभी तीन से कर लाश भी जो विभिन्न थाना क्षेत्र में लावारिस मिलते हैं। उन्हें सरकारी नियमावली के अनुसार 72 घंटे मर्चरी में रखवाया जाता है। जिससे कि उसकी लोग पहचान कर ले और यदि पहचान नहीं हो पता है तो 72 घंटे बाद पोस्टमार्टम करा कर उसका अंतिम संस्कार करते हैं। इस दौरान उन्होंने बताया कि जब पूरे देश में कोविड-19 की महामारी चल रही थी। और अपने भी अपने लोगों का दाह संस्कार करने से परहेज करते थे। उस वक्त बिरेंद्र सिंह की दर्जनों लोगों का कोविड 19 का परवाह किए बगैर संस्कार किए थे।उन्होंने बताया कि इस काम के लिए उनके पास कोई टीम नहीं है।बल्कि वह अकेले इस काम को करते हैं। और इस काम में श्मशान घाट के डोम राजा के द्वारा भी उनके कार्य में मदद की जाती है।