Article By : Deepika Gupta
ICN Network : आजकल हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, उसमें एक समावेशी समाज की आवश्यकता हर दिशा से महसूस हो रही है। समावेशी समाज वह समाज होता है, जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार मिलते हैं, चाहे उसकी जाति, धर्म, भाषा या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। यह समाज एक ऐसा वातावरण प्रदान करता है, जहाँ सभी को अपनी बात कहने का अवसर मिलता है और सभी को समान सम्मान और न्याय मिलता है। इस समाज में एकता, प्रेम और सहयोग की भावना होती है, और हर किसी की राय और अस्तित्व का सम्मान किया जाता है।
समावेशी समाज की नींव समावेशी शिक्षा पर आधारित होती है। समावेशी शिक्षा का मतलब है कि सभी बच्चों को बिना किसी भेदभाव के समान शिक्षा का अवसर मिलना चाहिए, चाहे उनकी शारीरिक, मानसिक या सामाजिक स्थिति कैसी भी हो। इसका उद्देश्य यह है कि हर बच्चे को उसकी क्षमता और जरूरत के अनुसार शिक्षा मिले, ताकि वह समाज में बराबरी से भाग ले सके और अपने अधिकारों का उपयोग कर सके। समावेशी शिक्षा में शिक्षक का रोल बेहद महत्वपूर्ण होता है। शिक्षक ऐसे मार्गदर्शक होते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी बच्चे स्कूल में खुश और सुरक्षित महसूस करें। वे बच्चों को इस प्रकार से पढ़ाते हैं कि हर बच्चा अपनी क्षमता के अनुसार सीख सके। यदि किसी बच्चे को अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है, तो शिक्षक उसकी मदद करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चा कभी भी खुद को अलग महसूस न करे।
समावेशी शिक्षा में यह सुनिश्चित करना कि हर बच्चे को अच्छा और समान शिक्षा मिले, एक बड़ा कदम है। इसके लिए कई उपाय किए जा सकते हैं, जैसे कि स्कूलों को बच्चों के घर के पास बनाना, ताकि बच्चों को स्कूल जाने में कोई कठिनाई न हो। इसके अलावा, विशेष कार्यक्रमों के जरिए उन बच्चों को अतिरिक्त मदद दी जा सकती है जिन्हें खास सहायता की जरूरत हो। हालांकि, समावेशी शिक्षा के रास्ते में कई चुनौतियाँ आती हैं, जैसे कि स्कूलों में संसाधनों की कमी और कुछ लोगों का यह न समझ पाना कि समावेशिता क्यों जरूरी है। इन समस्याओं का समाधान यह है कि हमें लोगों को यह समझाना होगा कि समावेशी शिक्षा से हर बच्चे का सर्वांगीण विकास होता है। इसके अलावा, स्कूलों को ज़रूरी संसाधन उपलब्ध कराने के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए।
आजकल तकनीकी विकास ने हमारे जीवन को और भी आसान बना दिया है, और समावेशी शिक्षा में तकनीकी का योगदान बहुत अहम हो सकता है। तकनीकी के माध्यम से बच्चे अलग-अलग तरीके से सीख सकते हैं, जैसे वीडियो, कहानियाँ, या इंटरएक्टिव गेम्स के जरिए। यह बच्चों को नए और मजेदार तरीके से सीखने में मदद करता है। विशेष रूप से जो बच्चे पारंपरिक तरीकों से नहीं सीख पाते, उनके लिए तकनीकी का उपयोग एक वरदान साबित हो सकता है।
आज के समय में समावेशी शिक्षा के कई उदाहरण हैं, जहाँ स्कूलों में बच्चों को उनके अलग-अलग पृष्ठभूमि और क्षमताओं के बावजूद एक साथ पढ़ाई करने का अवसर मिलता है। इन स्कूलों में बच्चों को एक-दूसरे का सम्मान करना और विविधता को स्वीकारना सिखाया जाता है। यह वातावरण बच्चों को अपनी क्षमताओं को जानने और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करने की शिक्षा देता है। ऐसे स्कूलों और समाजों में हर किसी को अपनी जगह मिलती है, और वे एक खुशहाल और समृद्ध जीवन जी सकते हैं।
समावेशी शिक्षा और समाज की अहमियत हमारे भविष्य के लिए बहुत बड़ी है। यह न केवल बच्चों को समान अवसर प्रदान करती है, बल्कि यह हमें एक-दूसरे को समझने और स्वीकार करने की भी शिक्षा देती है। समावेशी शिक्षा से हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं, जहाँ हर व्यक्ति को अपनी काबिलियत और जरूरत के हिसाब से सम्मान मिले। यह समाज हमारे लिए एक खुशहाल, न्यायपूर्ण और प्रगतिशील भविष्य की दिशा में एक कदम और बढ़ाएगा।
लेखक का संदेश: समावेशी समाज और समावेशी शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ाना हमारे समाज के लिए अनिवार्य है। यह न केवल हमारे बच्चों को समान अवसर प्रदान करता है, बल्कि यह हमें एक-दूसरे की विविधता को समझने और सम्मान करने का अवसर भी देता है। हमें इसे अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए ताकि हम एक ऐसा समाज बना सकें, जिसमें हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले।
By : Deepika Gupta
Educationist/Assistant Professor
Mangalayatan University, Aligarh
deepikaeducation22@gmail.com